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________________ १३३२ गो० कर्मकाण्डे गुणगुणियं । ६४००। ८।२। आदि । १००। ८।२। विहोणं । ६३००। ८।२। ऊणुत्तर भजियमें दु तावन्मात्रमेयककुं। प्रथमगुणहानिनिक्षिप्त शुद्धऋणमं नोडल द्वितीयावि गणहानिगळोळु ऋणमर्धा क्रममप्पुवु । संदृष्टि : २ . १८५८८ २८।१८।८ 21५८ ८ ८ ऋणं निक्षिप्य द्वाभ्यां भित्त्वा- १००।८।२ २००।८।२ ४००।८।२ ८००।८।२ १६००।८।२ ३२००।८।२ अन्तधणं ३२००।८।२। गुणगुणियं ६४००।८।२। आदि १००।८।२ विहीणं ६३०० । अन्तकी गुणहानिके ऋण सहित धनको घटाकर उसका आधा द्वितीय गुणहानिका धन होता है। इसी प्रकार आगे भी सब गुणहानियोंका धन जानना। सो प्रथम आदि गुणहानियोंका धन तिरसठ सौ गुणित आठ, इकतीस सौ गुणित आठ, पन्द्रह सौ गुणित आठ, सात सौ गुणित आठ, तीन सौ गुणित आठ और सौ गुणित आठ हुआ। इन सबमें अन्तकी गुणहानि१० का प्रमाण मिलानेपर और दोसे भेदन करनेपर क्रमसे प्रथमादि गुणहानियों में बत्तीस सौ, सोलह सौ, आठ सौ, चार सौ, दो सौ और सौका आठ गुणा तथा दो गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना प्रमाण हुआ। ३२००४८x२।१६००४८x२८००४८x२।४००४८४२।२००४८४२११००४८४२। इन सबको 'अन्तधणं गुणगुणियं' इत्यादि सूत्रसे जोड़ो। सो अन्तका धन प्रथम गुण१५ हानिका प्रमाण है । उसको गुणकार दोसे गुणा करो। उसमें आदि जो अन्तकी गुणहानिका __ धन है उसे घटाइए । तब तिरसठ सौको आठ से गुणा करके दोसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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