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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका
१३३१ पयंतं "अंतिमहोणपठमवळमेत्तं पढमे समयपबढ़" एंविंतु पेळल्पटुतु । तन्निमित्तमा चरमगुणहानि ऋणसहितमप्प धनमिनितपकु-। १००। ८ मिदं प्रथमगुणहानि ऋणसहितधनबोल कळेनुवनिदं ६२००। ८ । बळि यिसिदोडिदु । ३१००। ८। द्वितीयगुणहानिषनमकुमी क्रमविदं परमगुणहानिधनरहितार्खिक्रमदिदं चरमगुणहानिपथ्यंत सर्वगुणहानि धनंगळितिप्पुषु । १००
२००
७०० १५०० ३१०० ६३००
[६३००/
यिल्लि संकलननिमित्तमागि सर्वत्र चरमगुणहानिधामात्र १००।८। ऋणमनिक्किद्विविदं ५ भेविसि स्थापिसिदोडितिप्पूवु। । १०० ।टा। यिवं संकलिसिवोर्ड अंतषणं । ३२०० ।८।२।
८.२
२००
४०० । ८००
1८।२ १६०० |८।२ ३२००।८।२
रूपढ़ये पुनः प्राक्तनपंचगुणहानीनामुपरि दत्ते एतावत् ३२ । ८।५ ८ ८ प्रथमगुणहानिऋणसहितधनं च
परमगुणहानिऋणसहितधनेन १००। ८ । ऊनयित्वा । ६२००। ८ अधितं ३१००। ८ द्वितीयगुणहानिधनं स्यात् । एवमुपर्यपि सर्वगुणहानिधनानि साध्यानि । संदृष्टिः १०० । ८ । अत्र सर्वत्र चरमगुणहानिमात्रं १००।
३०० ।८। ७०० ।८। १५००।८। ३१००।८। ६३००।८।
भाग हुआ। तथा तीसरे आदि निषेकोंमें पहले कहे संकलन विधानसे दो बार संकलनके क्रम- १० से प्रथम गुणहानिके चयको जोड़ दीजिए। इस तरह दो हीन गच्छका दो बार संकलनमात्र प्रथम गुणहानिके चयको जोडिए । तब चय बत्तीसको एक, तीन, छह, दस, पन्द्रह, इक्कीससे क्रमसे गुणा करके जोड़नेपर बत्तीसको दो हीन आठसे और एक हीन आठसे तथा आठसे गुणा करके छहका भाग दीजिए ३२ ।।८।१। ऐसा करनेपर सत्रह सौ बानबे हुए। एक जुदा रखे गुणकारके प्रमाणमें-से इनको घटानेपर पाँच सौं सत्तानबे और दोका छठा भाग १५ रहा। शेष जो पाँच गुणकार रहे थे उनका प्रमाण ग्यारह हजार नौ सौ छियालीस और चारका छठा भाग हुआ। उनमें मिलानेपर बारह हजार पाँच सौ चौवालीस हुआ। इतना प्रथम गुणहानिमें ऋण जानना। जो राशि घटाने योग्य होती है उसे ऋण कहते हैं। और जो विवक्षितका प्रमाण होता है उसे धन कहते हैं। सो प्रथम गुणहानिके ऋण सहित धनमें
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