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________________ १३३४ गोकर्मकाणे तावन्मात्रमेयक्कु । सर्वत्र गुणहानिधनपंक्तियोळिक्किद द्वितीयऋणंगळुमिनि तप्पुवु १००८ १०. १००1८ १००८ १००१८ २००८ इवं संकलिसिदोडे नानागुणहानिगुणितगुणहानिमात्रसमयप्रबद्ध परमगुणहानिद्रव्यमक्कं १०० । ८।६। मो धनराशियुमं प्रथमऋणमुमं द्वितीयऋणमुमं क्रमविस्थापिसि । ६३ । । ०। ८।२। ऋ६३।४।५।८।८ द्वितीयऋण । १००।८।६ ई मूरु राशिगळं समयप्रबद्धशलाकेगळं ५ माडिदोर्ड मूल राष्ट्रिगतिपुंजु ६६००१८॥२३॥०.५८४६०८॥६ई मूरु राशिगळनपतिसि स्थापिसिबोडितिप्पु-। स ।।८।२। ऋस ।८५।८। स a । ८॥६ १००।६ विहीण-६३ । ८ । ५।८।८ रूऊणुत्तरभजियमिति तावदेव स्यात् । द्वितीयऋणानि १००। ८ संकलितानि १००।८ १००।८ १००।८ १००।८ १.०।८ नानागुणहानिगुणितगुणहानिमात्रचरमगुणहानिधनमात्राणि स्युः १००। ८।६। एवमुक्तधनप्रथमर्ण २- .. द्वितीयऋणानि च क्रमेण संस्थाप्य समयप्रबद्धशलाकाः कृत्वा ६३००। ८ । २ ६३ ।।५।८।८ ६३०० २- - ।८।२ ऋ स३1८।५।८।८ १० १००। ८। ६ अपवयैवं स्युः स । ६३०० स०।८।६ तत्र ३५८४ + २८८०+२२४०+ १६६४+११५२ + ७०४ + ३२०+२८८ जोड़नेपर बारह हजार पाँच सौ चौवालीस होते हैं। तथा प्रथम गुणहानिके ऋणसे द्वितीय आदि गुणहानियोंमें आधा-आधा ऋण होता है। सब गुणहानियोंका जोड़ 'अन्तधणं' के अनुसार अन्तधन प्रथम गुणहानिका ऋण | उसे दोसे गणा करो। तथा उसमें आदि जो अन्तिम गुणहानिका २० ऋण घटाओ। सो अन्तधन बारह हजार पाँच सौ चौवालीसको दोसे गणा करनेपर पचीस हजार अढासी हुए। उसमें आदि तीन सौ बानबे घटानेपर चौबीस हजार छह सौ छियानबे हुए । यही सब गुणहानियोंका ऋण है । तथा अन्तकी गुणहानिके धन प्रमाण सब गुणहानियोंमें वाण मिलाया था। उसको जोड़ देनेपर नानागुणहानिसे गुणित अन्तकी गुणहानिके धन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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