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________________ कर्णाटवृत्ति बीवतत्वप्रदीपिका १३२७ अनंतरं त्रिकोणरचनयोलिई नानागुणहानिगतद्रव्यंगळिनितप्पुववं कूडिदोर्ड किंचिन्न्यूनद्वघद्धं गुणहानिमात्रसमयप्रबद्ध गळप्पुर्व दु पेळदपरु : उवरिमगुणहाणीणं धणमंतिमहीणपढमदलमत्तं । पढमे समयपबद्धं ऊणकमेण ट्ठिया 'तिरिये ॥९४४॥ उपरितनगुणहानीनां धनमत्यहोनप्रथमवलमात्रं। प्रथमसमयप्रबद्धः ऊनक्रमेण स्थिता- ५ स्तिर्यग्रूपेण ॥ त्रिकोणरचनयोल विवक्षितवर्तमानसमयदोळ प्रथमगुणहानिप्रथम निषेकदोल तिर्यग्रुप. दिदं संपूर्णसमयप्रबद्धद्रव्यमिक्कुं। शेषद्वितीयनिषेकं मोदल्गोंडूर्ध्वरूपदि चरमगुणहानि चरमनिषेकपयंतं विशेषहीनक्रमदिदं पोगि मतमंते तिर्यग्रूपदिनिई द्वितीयादिगुणहानिगळ धनं अंत्यगुणहानिद्रव्यहीन स्वकीय स्वकीय प्रथमगुणहानिद्रव्याद्धमात्रमक्कुं। प्रथमगुणहानिधनमुं गुणहा- १० निमात्रसमयप्रबद्धमक्कुमदे ते दोडे त्रिकोणरचनेयोळनादिबंधनबद्धगळितावशेषसमयप्रबद्धंगळ विवक्षितमोहनीयमूलप्रकृतिगाबाधारहितोत्कृष्टस्थितिसमयमात्रंगळु तत्प्रथमसमयप्रबद्धचरमनिषेक मोवल्गोंडु चरमसमयप्रबद्धप्रयमनिषेपथ्यंतं तिर्यग्रूपदि विशेषाधिकक्रमविनिर्दुवनेकै क. निषेकंगळं कूडिदोई विवक्षितवर्तमानसमयदोनोंदु समयप्रबद्ध मुदयमाकुमा समयोलोंदु त्रिकोणरचनायां विवक्षितवर्तमानसमये प्रथमगुणहानिप्रथमनिषेके तिर्यक्सम्पूर्ण समयप्रबद्धद्रव्यं स्यात् । १५ द्वितीयनिषेकमादिं कृत्वा चरमगुणहानिचरमनिषेपयंतं चयहीनक्रमेण गत्वा तिर्यस्थितद्वितीयादिगुणहानिधनं अन्त्यगुणहानिद्रव्यहोनस्वस्वप्रथमगुणहानिद्रव्याघमात्रं स्यात् प्रथमगुणहानिधनं तु गुणहानिमात्रसमयप्रबद्धप्रमितं । तद्यथा त्रिकोणरचनायामनादिबन्धनबद्धगलितावशेष समयप्रबद्धाः विवक्षितमोहनीयमूलप्रकृतेराबाधारहितोत्कृष्टस्थितिमात्राः स्युः । तत्प्रथमसमयप्रबद्धचरमनिषेकमादि कृत्वा चरमसमयप्रबद्धप्रथमनिषेपर्यन्तं तिर्यग्विशेषा- २० आगे इस सत्तारूप त्रिकोण यन्त्रके जोड़ देनेका विधान कहते हैं त्रिकोण रचनामें विवक्षित वर्तमान समयमें प्रथम गणहानिके प्रथम निषेकमें तो तिर्यकपसे लिखे निषेकोंका समुदायरूप सम्पूर्ण समयप्रबद्ध प्रमाण होता है। उसके ऊपर दूसरे निषेकसे लगाकर अन्तकी गुणहानिके अन्तिम निषेक पर्यन्त एक-एक चयहीनके क्रमसे जाकर तिर्यकरूपसे स्थित द्वितीय आदि गुणहानिका धन अन्तकी गणहानिके जोड़को अपनी- २५ अपनी पहली गणहानिके जोड़में-से घटानेपर जो-जो प्रमाण हो उसका आधा-आधा होता है। किन्तु प्रथम गुणहानिका धन ( जोड़) तो गुणहानिके प्रमाणसे समयप्रबद्धको गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना है। विशेषार्थ-उक्त कथनका भाव यह है कि त्रिकोण रचनामें जो नीचे-नीचे प्रथम पंक्तिमें तिर्यकरूपसे लिखा उसको प्रथम गुणहानिका प्रथम निषेक कहते हैं। उसके ऊपरकी ३० पंक्तिमें जो लिखे उनको प्रथम गुणहानिका द्वितीयादि निषेक कहते हैं। गुणहानि आयाम प्रमाण पंक्ति पूर्ण होनेपर उसके ऊपर जो पंक्ति है उसको द्वितीय गुणहानिका प्रथम निषेक १. तिरिया मु.। क-१६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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