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________________ १३२८ गो० कर्मकाण्डे समयप्रबद्धं बंघमक्कु । म़ा समयबोळ सत्वद्रव्यमुं किचिन्नद्वय गुणहामिमात्रसमय प्रबद्ध मक्कु- । मल्कि प्रथमगुणहानिप्रथमनिषेकदोळु नानासमयप्रबद्धसंबध्येकैकनिषेकंगळं कूडिवोर्ड संपूर्णसमयबद्ध मक्कुं । आ प्रथमगुणहानि द्वितीयादितियग्निषेकंगळु समय प्रबद्धप्रथम निषेकाद्येकैकधिक्क्रमेग स्थितेरेकैकनिषेका मिलिस्वा विवक्षितवर्तमानसमये एकः समयप्रबद्ध उदेति । तस्मिन्नेव समये एक: ५ समयप्रबद्धो बध्नाति । सस्वद्रव्यं किचदून्द्व गुण हानिमात्र समयप्रबद्धं तिष्ठति । तत्र प्रथमगुणहानिप्रथम निषे के कहते हैं । उसके ऊपरकी पंक्तिको दूसरा निषेक कहते हैं। इस तरह से गुणहानि प्रमाण पंक्ति पूर्ण होनेपर उसके ऊपरकी पंक्तिको तीसरी गुणहानिका प्रथम निषेक कहते हैं। इसी प्रकार अन्तकी गुणहानि पर्यन्त जानना । इसे अंकसंदृष्टिरूप त्रिकोणयन्त्र में दिखाते हैं-नीचे ही नीचे बराबर पंक्ति रूपमें नौका निषेकसे लेकर पाँच सौ बारह पर्यन्त सब निषेक लिखे हैं । १० उनको प्रथम गुणहानिका प्रथम निषेक कहते हैं । इसका जोड़ सम्पूर्ण समयप्रबुद्ध प्रमाण तिरसठ सौ होता है। उससे ऊपर दूसरी पंक्ति में नौके निषेकसे लगाकर चार सौ अस्सीके निषेक पर्यन्त निषेक लिखे हैं । उसको प्रथम गुणहानिका दूसरा निषेक कहते हैं। इसका जोड़ पाँच सौ बारह चय हीन समयप्रबद्ध प्रमाण होता है। उससे ऊपर तीसरी पंक्ति में नौके निषेकसे लगाकर चार सौ अड़तालीस के निषेक पर्यन्त लिखे हैं । उसको प्रथम गुणहानिका १९ तीसरा निषेक कहते हैं । इसका जोड़ इससे पूर्व की पंक्तिके जोड़में से चार सौ अस्सी घटाने पर जो शेष रहे उतना है । इस प्रकार अन्तको गुणहानिके अन्तिम निषेक पर्यन्त जोड़ एकएक निषेकरूप चय हीन होता जाता है । इस प्रकार अड़तालीस पंक्तियाँ होती हैं । उनमें नीचे से लगाकर आठ पंक्ति पर्यन्त प्रथम गुणहानिका प्रथमादि निषेक कहते हैं। उसके ऊपर ata पंक्ति लगाकर सोलहवीं पंक्ति पर्यन्त द्वितीय गुणहानिका प्रथमादि निषेक कहते हैं । २० इस प्रकार आठ-आठ पंक्तियोंकी एक गुणहानि जानना । उनमें जो चय घटाये थे उनको मिलानेपर प्रथम गुणहानिके तिरसठ सौको आठ गुणहानिसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना है । उसमें से अन्तकी गुणहानिके जोड़ आठ गुणा सौ है, उसे घटानेपर आठ गुणा बासठ सौ होता है । उसका आधा आठ गुणा इकतीस सौ होता है । यही दूसरी गुणहानिका जोड़ है । उसमें अन्तकी गुणहानिका जोड़ आठ गुणा सौ घटानेपर आठ गुणा तीस सौ होता २५ है । उसका आधा आठ गुणा पन्द्रह सौ होता है । यही तीसरी गुणहानिका जोड़ है । इसी प्रकार अन्तकी गुणहानि पर्यन्त जानना । इन सबको जोड़ने की विधि - प्रथम गुणहानिमें जो चय घटे थे उनको जोड़नेपर प्रथम गुणहानिमें ऋण होता है । उसका आधा दूसरी गणहानि ऋण होता है । इसी प्रकार अन्तकी गणहानि पर्यन्त आधा-आधा होता है । इन सबको जोड़कर पूर्व प्रमाण में से घटानेपर जो शेष रहे वही त्रिकोणयन्त्रका जोड़ होता है। वही ३० दिखाते हैं त्रिकोण रचना में अनादि कालसे बँधे और उनमें से निर्जरारूप होकर गल जानेसे शेष रहे, विवक्षित मोहनीय मूलप्रकृति के समयप्रबद्ध आबाधा रहित उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण होते हैं । उनमें से प्रथम समयप्रबद्ध के अन्तिम निषेकमे लगाकर अन्तिम समयबद्धके प्रथम निषेक पर्यन्त तिर्यक् रूपसे स्थित तथा एक-एक चय अधिक एक-एक निषेक मिलकर एक ३५ समयप्रबद्ध विवक्षित वर्तमान समयमें उदयमें आता है । उसी समय में एक समयप्रबद्ध बँधता भी है। तथा सत्तारूप द्रव्य किंचित न्यून डेढ़ गुणहानिसे गुणित समयबद्ध प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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