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________________ गो० कर्मकाण्डे प्रति समर्याकंचिवून द्वयर्द्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धं नियर्मादिदं सस्वमक्कु । मदुवुं त्रिकोणस्वरूपदिनि द्रव्यमं कूडुतं विरलु तावन्मात्रसमय प्रबद्ध मध्युवप्पुदरिदं । स ० १२ ॥ १३२६ संस्वद्रव्यं तु प्रतिसमयं त्रिकोणस्वरूपस्थितद्रव्ये मिलिते किचिदून द्वयर्धगुणहा निगुणित समयप्रवमात्रं नियमात् स्यात् स ० १२ - ॥ ९४३ ॥ तद्यथा- ५ सत्तारूप परमाणुओंका समूहरूप सत्त्व द्रव्य कुछ कम डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण होता है । यह नियम है || ९४३ ॥ विशेषार्थ - त्रिकोण रचनाके सर्वं द्रव्यका जोड़ इतना ही होता है। पहले जीवकाण्डयोगाधिकार और कर्मकाण्डके बन्ध-उदय-सत्स्वाधिकार में त्रिकोण यन्त्र लिखा है । वहाँ कैसे प्रतिसमय समयबद्ध प्रमाण द्रव्यका उदय होता है और कैसे किंचित् न्यून डेढ़ गुण१० हानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण सत्त्व रहता है यह कहा है । यहाँ अंकसंदृष्टिको स्पष्ट करते हैं ३५ जिस समय प्रबद्ध के सर्वनिषेक सत्ता में है उसके अड़तालीस निषेक नीचे-नीचे लिखे | उसके ऊपर जिस समयप्रबद्धका प्रथम निषेक गल गया उसके सैंतालीस निषेक लिखे । उसके ऊपर जिसका पहला और दूसरा निषेक गल गया उसके छियालीस _निषेक लिखे | १५ इस प्रकार एक-एक निषेक हीन लिखते-लिखते अन्तमें जिस समयप्रबद्धके सैंतालीस निषेक गल गये उसका एक अन्तिम निषेक लिखा । यह सत्ताकी अपेक्षा रचना जाननी । तथा वर्तमान विवक्षित समयसे आगे जैसे एक समयप्रबद्धका बन्ध होता है, वैसे ही एक समय २५ बद्धकी निर्जरा होती है । अत: जैसे सत्ताकी रचना कही वैसे ही जानना । इस त्रिकोणयन्त्रकी रचनाका जोड़ किंचित् न्यून डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण होता है । यही २० सत्त्व द्रव्यका प्रमाण है । विवक्षित वर्तमान समय में जिस समय प्रबद्धके सैंतालीस निषेक पहले गल गये उसका एक अन्तिम निषेक उदयरूप होता है। जिसके छियालीस निषेक गल गये उसका द्विचरम निषेक उदयरूप है । अन्तका निषेक आगामी समय में उदय में आयेगा । इसी क्रम जिसका एक भी निषेक नहीं गला उसका प्रथम निषेक उदयरूप है, अन्य निषेक आगामी समयों में क्रम से उदयमें आवेंगे। इस प्रकार अन्तके निषेकसे लगाकर प्रथम निषेक पर्यन्त सब निषेकों को जोड़ देनेपर एक समय प्रबद्धका उदय होता है। उसके ऊपर उस विवक्षित समय के अनन्तर जो वर्तमान समय होता है उसमें जिस समयप्रबद्धका पहले अन्त निषेक उदयमें आया था उसके तो सर्व निषेक गल चुके । किन्तु जिसका द्विचरम निषेक उदयमें आया था उसका यहाँ अन्तका निषेक उदयरूप होता है। इस तरह पूर्वोक्त प्रकार से एक-एक निषेकका उदय होते जिसके प्रथम निषेकका उदय पहले हुआ था उसका यहाँ दूसरे निषेकका उदय होता है और उस समयप्रबद्ध के पीछे जो समयप्रबद्ध बँधा था उसका प्रथम निषेक उदयरूप होता है । इस प्रकार से इस दूसरे विवक्षित समय में भी समयबद्धका ही उदय होता है । इस प्रकार प्रतिसमय एक समयप्रबद्धका उदय होता है । इसीसे त्रिकोणरचना दो रूपमें की हैं। उनमें कुछ आदि निषेक और कुछ अन्त निषेक लिखे हैं और बीच में बिन्दी लिखी हैं । सो उसका अभिप्राय है कि उनके स्थान में मध्यके निषेक जान लेना ||९४३ ॥ ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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