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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १२८३ एंबुतंद संकलित धनमिदु । चतुर्था च चतुर्थमप्प नानागुणहानिशलाकाराशियक्कु । मी राशिगे दलशलाके ये पेसरकुमेके दोडा अन्योन्याभ्यस्तराशिय दळवारंगळपुरिदं नानागुणहानिशलाकगळ्गे दलशलाकेगळे दु पेळल्पटुवु । अदकारणमागि: वग्गसलागेणवहिदपल्लं अण्णोण्णगुणिदरासी हु । णाणागुणहाणिसला वग्गसलच्छेदणूणपल्लछिदी ॥९२६॥ वर्गशलाकयाऽपहृतपल्यमन्योन्याभ्यस्तराशिः खलु नानागुणहानिशलाकावर्गशलाकाच्छेदनोनपल्यच्छेदाः॥ पल्यवर्गशलाकगलिंवं भागिसल्पट्ट पल्यमन्योन्याभ्यस्तराशि स्फुटमागियक्कुमप्पुरिंदमा राशिय दलवारंगळप्पुरिदं नानागुणहानिशलाकगळु पल्यवर्गशलाकाराशिच्छेदनोनपल्यच्छेद प्रमि. तंगळप्पुर्वेदु अन्वयव्यतिरेकमुर्खाददं समथिसल्पद्रुवु ॥ अंनंतरंगुणहान्यायामप्रमाणमं पेळ्दपर:- १० सबसलायाणं जदि फ्यदणिसेये लहेज्ज एक्कस्स | किं होदित्ति णिसेये सलाहिदे होइ गुणहाणी ॥९२७॥ सर्वशलाकानां यदि प्रकृतनिषेकान् लभेत एकस्य किं भवेदिति निषेकान् शलाकाभिर्हते भवेद्गुणहानिः॥ २ आदिविहीणं छे-व-छे इति संकलनं चतुर्थो नानागुणहानिशलाकाराशिः स्यात् ॥९२५॥ पल्यवर्गशलाकाभक्तपल्यमन्योन्याभ्यस्तराशिः स्यात् । नानागुणहानिशलाकाराशिः खलु पल्यवर्गशलाकानामर्धच्छेदैन्यूनपल्यच्छेदमात्रः ॥९२६॥ अथ गुणहान्यायामप्रमाणमाह-- पंक्तिमें लिखो। इन तीनोंके अर्द्धच्छेद-चारके दो, सोलहके चार और दो सौ छप्पनके आठ, इन तीनोंको दूसरी पंक्तिमें लिखो। इन तीनोंकी वर्गशलाका-चारकी एक, सोलहकी दो, दो सौ छप्पनकी तीन, ये तीनों तीसरी पंक्तिमें लिखो। प्रथम पंक्तिके चार, सोलह, दो २० सौ छप्पनको परस्परमें गुणा करनेपर सोलह हजार तीन सौ चौरासी होते हैं। तथा पण्णट्टीमें चारका भाग देनेपर भी इतने ही होते हैं। दूसरी पंक्तिके दो, चार, आठको 'अन्तधणं गुणगुणियं' इत्यादि सूत्रके अनुसार जोड़नेपर अन्तधन आठको गुणकार दोसे गुणा करनेपर सोलह हुए। उसमें आदि दो घटानेपर चौदह रहे। एक हीन गुणकार एकका भाग देनेपर भी चौदह ही रहे । यही तीनोंका जोड़ है। तथा पण्णट्ठीके अर्द्धच्छेद सोलहमें-से पण्णट्ठीकी २५ वर्गशलाका चारके अर्द्धच्छेद दो घटानेपर भी चौदह ही होते हैं। तीसरी पंक्तिका यहाँ प्रयोजन नहीं है। इस प्रकार सत्तर कोडाकोड़ी सागरकी स्थितिवाले मिथ्यात्व कर्मकी अन्योन्याभ्यस्त राशि और नानागुणहानि कही । अन्य कर्मोकी आगे कहेंगे ॥९२५।। इस प्रकार पल्यको वर्गशलाकाका भाग पल्यमें देनेपर जो प्रमाण होता है उतना ३० अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण जानना। तथा पल्यकी वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदोंको पल्यके अर्द्धच्छेदोंमें घटानेपर जो प्रमाण रहे उतना नानागुणहानिका प्रमाण जानना ॥९२६।। आगे गुणहानि आयामका प्रमाण कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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