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________________ गो० कर्मकाण्डे बळिषक तां स्थापिसिद मूरुं राशिगळ पंक्तिगळोळु प्रथमद्विरूपवर्गधारेयोल पुट्टिव पत्यवर्गशल काराशि मोदल्गोड पल्यप्रथम मूलपय्र्यंतमिद्देवगंराशिगळ संवर्गदिदं पुट्टिद राशि पल्यमं पल्यवर्गशलाकाराशियिदं भागिसिदनितक्कु प मिदु चरमप्प अन्योन्याभ्यस्त राशिप्रमाणमक्कुमं दु व पेळपट्टुवु । चरमत्त्रमिदवर्क तादुदें दोडेमुं पेव्द निर्देशविधियोल पेद द्रव्यादिगलो षष्ठचरम५ राशियप्रदं । मत्तमा पल्यबर्ग वर्गांशलाकाराशिगर्द्धच्छेदंगळ पत्यवग्गंशालाका र्द्धच्छंदराशिप्रमाणंगळवु । व छे । मेलेद्विगुणद्विगुणक्रमदिदं पोगि प्रथममूलराशिगर्द्धच्छेदंगल पल्यच्छेदार्द्ध प्रमितंगळप्पुवु छे इवर संकलनधनं अंतधणं हे गुणगुणियं हे २ आदिविहोणं छे व छे रूऊणुतरभजिय a २ २ १२८२ १० तदर्धच्छेदान् तद्वर्गशलाकाश्च संस्थाप्य पंक्तित्रयं कृत्वा तत्र वर्गशलाका दिपत्यप्रथम मूलपर्यंत राशीनां संवर्गः पत्य वर्गशलाकाभक्त१ल्यमात्रः चरमः अन्योन्याम्यस्तराशिः स्यात् । तदर्धच्छेदराशीना मंतघणं छे गुणगुणियं छे २ २ द्विरूप वर्गधाराके पल्की वर्गशलाका से लेकर पल्यके प्रथम वर्गमूल पर्यन्त स्थानोंको, उनके अर्द्धच्छेदों को और उनकी ही वर्गशलाकाओं को स्थापन करके तीन पंक्ति करो । प्रथम पंक्ति में तो पल्यकी वर्गशलाका प्रमाण नीचे लिखो । उसके ऊपर उसका वर्ग लिखो । इस प्रकार क्रमसे प्रथम मूलपर्यन्त वर्गस्थान लिखो । दूसरी पंक्ति में पल्की वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदोंसे लगाकर दूने दूने पल्यके प्रथम वर्गमूलके अर्द्धच्छेद पर्यन्त लिखो । तीसरी पंक्ति१५ में पल्की वर्गशलाकाकी शलाकासे लगाकर एक-एक बढ़ाते हुए पल्यके प्रथम मूलकी वर्गशलाका पर्यन्त लिखो । प्रथम पंक्तिकी राशिको परस्पर में गुणा करनेपर पल्यकी वर्गशलाकाका भाग पल्य में देने पर जो प्रमाण आवे उतना होता है । वही अन्तिम छठी अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण जानना । दूसरी पंक्तिको जोड़नेपर पल्यकी वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदों के प्रमाणको पल्य के अर्द्धच्छेदोंके प्रमाणमें से घटानेपर जो रहे उतना होता है । वह कैसे होता २० है यही कहते हैं I द्विरूप वर्गधारामें अर्द्धच्छेद प्रत्येक स्थानके दूने-दूने कहे थे । उन्हें 'अर्द्धन्तधणं गुणगुण आदि विहीणं रूऊणुत्तरपदभजियं' सूत्र के अनुसार जोड़िए । गुणकार करते हुए अन्तमें जो प्रमाण हो उसको जितनेका गुणकार हो उससे गुणा करें। उसमें से पहले जितना प्रमाण हो उसे घटावें । जो प्रमाण हो उसमें एक हीन गुणकारका भाग दें। ऐसा करनेपर जो प्रमाण २५ हो वही गुणकाररूप सब स्थानोंका जोड़ जानना । सो यहाँ अन्तमें पल्यके अर्द्धच्छेदोंसे आपके प्रथम मूलके अर्द्धच्छेद हैं । उनको यहाँ गुणकार दोसे गुणा करनेपर पल्य के अर्द्धच्छेदों का प्रमाण होता है । उसमें से पल्यकी वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदोंके प्रमाणको घटानेपर पल्की वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदोंसे हीन पल्यको अर्द्ध च्छेद राशिका जो प्रमाण है उतना होता है । गुणकार दोमें से एक घटानेपर एक रहा। उससे भाग देनेपर उतने ही रहे । सो ३० यहाँ चतुर्थ राशि नानागुणहानिका प्रमाण जानना । इस कथनको अंकसंदृष्टिसे स्पष्ट करते हैं। कल्पना करें कि पल्या प्रमाण पण्णट्ठी ६५५३६ है । उसकी वर्गशलाका चार, उसका वर्ग सोलह और उसका वर्ग पण्णीका प्रथम वर्गमूल दो सौ छप्पन, इन तीनोंको प्रथम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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