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५.
गो० कर्मकाण्डे
सर्व्वमानागुणहानिशलाकेगळगे एतलानुं प्रकृति सर्व्वस्थिति निषेकंगळं पडेगुमप्पोडोडं गुणहानिशलाकेनि निषे कंगळपूर्व दु त्रैराशिक मंमाडि निषेकान् सर्व्वस्थिति निषेकंगळं शलार्क - गळिदं भागिसुतं विरलु प्र । छे व छे । फ । प १ । इ । श १ | लब्धं गुणहान्यायामक्कं । प १ ॥ छे व छे
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द्विगुणहानिप्रमाणं निषेकहारस्तु भवेत्तेन हृते । इष्टान्प्रथम निषेकान्विशेषमागच्छति तत्र ॥ तुम गुणहानियं द्विगुणिसिदोर्ड तत्प्रमाणं निषेकहारमक्कुमा निषेकहारविंद मिष्टगुणहानिप्रथम निषेकमं भागिसिदोडा गुणहानियोळु विशेषप्रमाणमवकुमितु द्रव्यस्थितिगुणहानि नाना१. गुणहानि निषेकहार अन्योन्याभ्यस्त राशिगळे दी षड्राशिवळ प्रमाणं ज्ञापितमागुत्तं विरलु :
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अनंतरं दोगुणहानिप्रमाण तुमनदर प्रयोजनमुमं पेदपरु । :
दोगुणहाणिरमाणं णिसेयहारो दु होइ तेण हिदे | इट्ठे पढमणिसेये विसेसमागच्छ तत्थ ||९२८||
तु पुनः द्विगुणितं तद्गुणहानिप्रमाणं निषेकहारः स्यात् । तेन हारेण इष्टगुणहानिप्रथमनिषेके भक्ते १५ तद्गुणहानी विशेषप्रमाणं स्यात् ॥ ९२८ ॥ एवं द्रव्यादीनां प्रमाणं ज्ञापयित्वोत्त रकृत्यमाह -
सर्वनानागुहा निशलाकानां यदि प्रकृतसर्वस्थितिनिषेका लभ्यन्ते तदा एकगुणहानिशलाकायाः कि स्यादिति त्रैराशिकेन निषेके नानागुणहानिशलाकाभक्ते प्रछे-व-छे । फ-प १ । इश १ लब्धं गुणहान्यायामः स्यात् प ू ॥९२७॥ अथ दोगुणहानिप्रमाणं तत्प्रयोजनं चाह
छे व छे
सर्व नानागुणानि शलाकाओंके यदि स्थितिके सब निषेक होते हैं तो एक गुणहानि शलाकाके कितने निषेक होंगे ? ऐसा त्रैराशिक करे । प्रमाण राशि नानागुणहानि शलाकाका प्रमाण है । सो यहाँ पल्यकी वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदोंसे हीन पल्य के अर्द्धच्छेद प्रमाण है । तथा फलराशि सब स्थितिके निषेक है । सो यहाँ संख्यात पल्य प्रमाण है । और इच्छाराशि २० एक शलाका है । सो फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो प्रमाण हो उतना
ही गुणहानि आयामका प्रमाण जानना । जैसे अंकसंदृष्टि में प्रमाण राशि नानागुणहानि छह, फलराशि स्थिति अड़तालीस, इच्छाराशि एक गुणहानि । सो फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर गुणहानि आयामका प्रमाण आठ होता है । एक गुणहानिमें आठ निषेक पाये जाते हैं ॥ ९२७ ॥
आगे गुणहानिका प्रमाण और उसका प्रयोजन कहते हैं
गुणहानि आयाम के प्रमाणको दुगुना करनेपर दो गुणहानि होती है । इसीका नाम निषेकार है । इस दो गुणहानि प्रमाण भागहारका भाग विवक्षित गुणहानि के प्रथम निषेक में देनेपर जो प्रमाण आवे वही उस गुणहानिमें विशेषका प्रमाण होता है । इसे ही चय कहते हैं ||९२८ ||
इस प्रकार द्रव्यादिका प्रमाण बतलाकर आगेका कार्य कहते हैं
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