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________________ १२७० गो० कर्मकाण्डे चयंगळं Sasa२११ द्विकदिदं समच्छेदम माडिSaal२१-१२ २११।१२।११ २११२।२११२ चरमसमय धनमिदु adॐ।२१११।२ ऋ ई अपूर्वकरणचनाभिप्रायं पेळल्पडुगुम २१११।२११।२ देत दोर्ड अधःप्रवृत्तकरणपरिणाम धनमं नोडलु=a । अपूर्वकरणपरिणामधनमसंख्यातलोकगुणमक्कु 3333 मी परिणामंगळोळपूर्वकरणप्रथमसमयविशुद्धिपरिणामंगळसंख्यातलोकमात्रंगळप्पुववं नोडल द्वितीयादिसमयविशुद्धिपरिणामंगळु मसंख्यातलोकमानंगळेयप्पुवादोर्ट प्रतिसमयं चयाधिकंगळप्पुवल्लि अपूर्वकरणप्रथमसमयजघन्यविशुद्धिपरिणामस्थानमधःप्रवृत्तकरणचरमसमयचरमानुकृष्टिखंडसर्वोत्कृष्टविशुद्धिपरिणामस्थानमं नोडलनंतगुणविशुद्धिपरिणामस्थान. मक्कुमा जघन्यविशुद्धिस्थानमं नोडलं तत्प्रथमसमयसर्बोत्कृष्टापूर्वकरण विशुद्धिस्थानमनंतगुण मक्कुमेके दोडल्लियसंख्यातलोकमात्रषट्स्थानंगळप्पुवप्पुरिंदमा प्रथमसमय सर्वोत्कृष्टविशुद्धिपरि१० णामस्थानमं नोडलु द्वितीयसमयापूर्वकरणसर्वजघन्यविशुद्धिस्थानमनंतगुणमक्कु । मा जघन्यमं नोडलु द्वितीयसमयसर्वोत्कृष्टविशुद्धिस्थानमन्तगुणमक्कुमेके दोडा द्वितीयसमयजघन्यस्थान अत्र रूपोनगच्छमात्रचयेषु = aaa२११ २ ११ । १२ ११ द्वाभ्यां समच्छेदेन - a = ०२११-१२ २११ ।।२१।२ वृद्धेषु चरमसमयधनं स्यात् = = ३२१११२ । ऋ १ । अत्रायमर्थः-अपूर्वकरणधनमधःप्रवृत्तकरण २११।१।२११ । २ धनादसंख्यातलोकगुणं तत्र प्रथमसमयपरिणामाः असंख्यातलोकमात्राः । तेभ्यो द्वितीयादिसमयेषु १५ तदालापा अपि प्रतिसमयं चयाधिकाः सन्ति । तत्प्रथमसमयजघन्यविशुद्धिपरिणामोऽधःप्रवृत्त करणचरमखण्डोत्कृष्ट विशुद्धिपरिणामादनंतगुणः । ततस्तदुत्कृष्टोऽनन्तगुगः कुतः ? तत्राप्यसंख्यातलोकमात्रषट्स्यानसम्भवात् । ततो पाये। यही प्रथम समयसम्बन्धी परिणामोंका प्रमाण है। तथा चतुर्थ सूत्रके अनुसार आदिके प्रमाणमें एक-एक चयका प्रमाण सोलह-सोलह क्रमसे मिलानेपर आगेके समयों में परिणामोंका प्रमाण होता है। जैसे प्रथम समय में चार सौ छप्पन है। उनमें एक चय २० मिलानेपर दूसरे समयमें चार सौ बहत्तर होते हैं। उनमें एक चय मिलानेपर तीसरे समयमें चार अट्ठासी होते हैं । इसी प्रकार अन्त समयपर्यन्त जानना । यह तो दृष्टान्त मात्र है। यथार्थ में अधःप्रवृत्तकरणके परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण हैं। उनको असंख्यात लोकसे गुणा करनेपर अपूर्वकरणका सर्वधन होता है। अपूर्वकरणके कालके समयोंका प्रमाण गच्छ है । गच्छके वर्गको संख्यातसे गुणा करके उसका भाग सर्वधनमें देनेपर चयका प्रमाण २५ होता है । एक कम गच्छके आधेको चयसे गुणा करके फिर गच्छसे गुणा करनेपर चयधनका प्रमाण होता है। चयधनको सर्वधनमें-से घटाकर शेषको गच्छका भाग देनेपर प्रथम समयके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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