SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ १० १२४२ २५ गो० कर्मकाण्डे णत्थि य सत्त पदत्था नियदीदो कालदो तिपंतिभवा । चोद्दस इदि णत्थित्ते अक्किरियाणं च चुलसीदी ||८८५ || नास्ति च सप्तपदार्थाः नियतितः कालतस्त्रिपंक्तिभवाः । चतुर्द्दश इति नास्तित्वे अक्रियाणां चतुरशीतिः ॥ नास्तित्वमं सप्तपदात्थंगळं नियति । काल २ ॥ जो | अ | आ । बं । नि । बं । मो ७ नास्ति १ को जाणइ णवभावे सत्तमसत्तं दयं अवच्चामिदि । अवयणजुदसत्ततयं इदि भंगा होंति तेसट्ठी ||८८६ ॥ को जानीते नव भावान् सत्वमसत्वं द्वयमवक्तव्यमिति । अवचनयुतसत्वत्रयमिति भंगा भवंति त्रिषष्टिः ॥ जीवाजीवपुण्यपापा व संवर निज्र्ज्जराबंध मोक्षंगळं अस्ति । नास्ति । अस्ति नास्ति । अवक्तव्यं । अस्त्यवक्तव्यं । नास्त्यवक्तव्यं । अस्तिनास्त्यवक्तव्यमे विदनाररिवर 'दु नुडिव वादंगल ९ । ७। लब्ध भंग ६३ अनुवु । जीवोऽस्तीति को जानीते । जीवो नास्तीति को जानीते । जोवोऽस्ति १५ नास्तीति को जानीते । जीवोऽवक्तव्य इति को जानीते । जीवोऽस्त्यवक्तव्य इति को जानीते । नियतिकालंगळं मेलं मेले त्रिपंक्तियं माडि स्थापिसि जीवो नियतितो नास्ति क्रियते इत्याद्यक्ष संचारसंजनिना क्रियावादंगळु पदिनाकुं । ११७ २ । कूडि सर्व्वमुमक्रियावादंगळु चतुरशीति प्रमितंगळप्पुवु । ८४ ॥ अनंतरमज्ञानवाद भेदंगळं पेदपरु : नास्तित्वं सप्तपदार्थान् नियतिकालो चोपर्युपरिपंक्तीः कृत्वा जीवो नियतितो नास्ति क्रियते इत्याद• यश्चतुर्दश स्युः । इत्येवम क्रियावादाश्चतुरशीतिः ॥ ८८५ || अज्ञानवादस्य भेदानाह जीवा दिनवपदार्थेष्वेकैकस्य वस्त्यादिसप्तभंगेष्वेकैकेन जीवोऽस्तीति को जानाति ? जीवो नास्तीति को पहले नास्ति पद लिखो । उसके ऊपर सात पदार्थ लिखो। उसके ऊपर नियति, काल ये दो लिखो । जीव नियतिसे नहीं है, जीव कालसे नहीं है। जीवकी जगह अजीवादि रखने से चौदह भेद होते हैं । इस तरह सब चौरासी भेद होते हैं । २० विशेषार्थ - अक्रियावादियोंमें दो मत जान पड़ते हैं । एक जो काल आदि पाँचों से जीवादको नास्तिरूप कहते हैं । और दूसरे जो केवल काल और नियतिसे नास्तिरूप कहते हैं ।।८८५। Jain Education International अज्ञानवाद के भेद कहते हैं जीव और नौ पदार्थों में से एक-एकके अस्ति आदि सात भंगों में से एक-एकसे जीव है, ऐसा कौन जानता है । अर्थात् जीव है ऐसा कौन जानता है ? जीव नहीं है ऐसा कौन जानता है । जीव है भी और नहीं भी है ऐसा कौन जानता है। जीव अवक्तव्य है ऐसा कौन जानता है ? जीव अस्ति अवक्तव्य है ऐसा कौन जानता है । जीव नास्ति अवक्तव्य है I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy