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________________ कर्णाटवृत्ति बीवतत्वादीपिका १२०७ इदु पण्णत्तिय चतुत्याशमकुं ६५ = १ संदृष्टि :|जी १।१४। ९१ । ३६४। १००१२००२३००३।३४३।३००३।२००२।१००१॥३६४/९१४१४ार " दा१।५।१०।१०।५।११३२॥ अ१।४।६।४१।१६। च१।३।३।१।८। वि१।२।१।४। कु१।१२। कु१।१। इल्लि गुपयोगीयप्प संकलनसूत्रमं पेळ्दपर इट्ठपदे रूऊणे दुगसंवग्गम्मि होदि इधणं । असरिच्छाणंतधणं दुगुणेगूणे सगीयसबधणं ॥८६१॥ इष्टपदे रूपोने द्विकसंवर्गे भवतीष्टधनं । असदृशानामंतषनं द्विगुणकोने स्वकीयसवंधनं ॥ ५ इल्लि यिष्टपद विवक्षितपदं जीवभावं पदिनय्दर्नयवादोडा पदसंख्येयोलो दुरूपं कुंविसि १५-१। शेषमं पविनाल्कं १४ । विरलिसि प्रतिरूपं द्विकमनित्त संवर्ग माडल्पडुत्तिरलु बंद लब्धर्मिष्टधनं पदिनारुसासिरद मूनूरेग्भत्तनाल्पप्पुददु । १६३८४ । पण्णट्ठिय चतुत्यशिमक्कु बुवत्यमा असदृशानामतनं ई प्रत्येकपदंगळोळपुट्टिव अवसानधनमना पण्णट्ठिय चतुशमं अंतषणं गुणगुणियं आदिविहीणं रूऊणुत्तरभजियमें दितु द्विगुणिसियों रूपं कळेयुत्तं विरलु स्वकोयेष्टस्थानदोळ १० सर्वधनमक्कुं संदृष्टि १६५ = १ | २। ऋण १ इदनपत्तिसिवोर्ड संदृष्टि |६५ = ऋण ४ा भंगाः १६३८४ । इदं पंण्णटिचतुर्थाशः ६५ % १ ।।८६०।। अथोत्तरत्रयभंगसंकलनसूत्रमाह - इष्टपदं विवक्षितभाव: जीवत्वं तदा पंचदशसु रूपे ऊने १५ । शे १४ मात्रविकसंवर्गे कृते इष्टधनं स्यात् छह बार जोड़ लानेके लिए आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदहको परस्पर में गुणा करके उसमें सात, छह, पाँच, चार, तीन, दो, एकको परस्परमें गुणा करके उससे भोग देने १५ पर चौंतीस सौ बत्तीस होते हैं ।।८६०॥ आगे भंगोंको मिलानेके लिए सूत्र कहते हैं विवक्षित पदकी संख्या जितनी हो उसमें एक घटानेपर जितना रहे उतने दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर विवक्षितपदके भंगोंके प्रमाणरूप इष्ट धन होता है। जैसे जीवपदकी संख्या पन्द्रह है। उसमें एक घटानेपर चौदह रहे। सो चौदह जगह दोके अंक २० क-१५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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