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________________ १२०८ २० अनंतर मिलिमत्त प्रकारदिदमा प्रत्येकद्विसंयोगत्रिसंयोगादिगळं साधिसुदुपायं तोरल्पडुगुमर्वर्त वोर्ड आ प्रथमकुमतिज्ञानवोळ प्रत्येक भंगमो वैयक्कुं । १. । कुश्रुतभाववोलु कुमविज्ञान: दोळे तंते प्रत्येकभंगमो वैयक्कुं । १ । कुमतिज्ञानप्रत्येक संयोगसंख्येयदु कुश्रुतज्ञानदोऴुद्विसंयोगसंख्येयक्कं १ । अंतु कुश्रुतबोळ भंगंगळेरड्डु २ । विभंगदोळ कुश्रुतवोळे तंर्त प्रत्येक भंगमों बु १ । ५ तबधस्तन कुश्रुतद प्रत्येकभंगंमं द्विसंयोगभंगंमुमं कूडिवोड द्विसंयोगभंगमेरडु २ । अधस्तनद्विसंयोगमोपरितन त्रिसंयोगप्रमाणमक्कुं । १ । कूडि विभंगबोळ भंगंगळ नाल्कु ४ । चक्षुर्दर्शनबोल तदधस्तन प्रत्येक संयोग प्रमाणमे प्रत्येक भंगमों वैयक्कुं । १ । आ विभंगज्ञान प्रत्येक भंग मुमं द्विसंयोगमुमं कूडिवोर्ड द्विसंयोगभंगंगळ मूरु ३ । विभंगद्विसंयोगमुमं त्रिसंयोगमुमं कूडिदोर्ड त्रिसंयोगप्रमाणमक्कु - ३ | मी भंगत्रिसंयोगप्रमाणमे चतुःसंयोगप्रमाणमवकुं १ | कूडि चक्षुर्दर्शनबोल १० भंग टु ८ । अचक्षुर्द्दर्शनदोळु तदधस्तन प्रत्येकभंगमो देयंक्कुं । १ । अहंगे चक्षुर्द्दर्शन प्रत्येक भंगमुमं द्विसंयोगभंगमुमं कूडिदोडे द्विसंयोगभंगंगळु नाल्कप्पवु । ४ । मत्तमा चक्षुर्द्दर्शनद्विसंयोगमं त्रिसंयोगमुमं कूडिदोर्ड त्रिसंयोगभंमंगळारम्वु । ६ । मा त्रिसंयोगमुमं चतुःसंयोगमुमं कूडिवोर्ड चतुःसंयोगभंगंगळु नाल्कप्पवु । ४ ।. आ. चतुःसंयोगप्रमाणमे पंचसंयोगमक्कं । १ ॥ कूडियचक्षु दर्शनवोळ भंगंगळु पविनारु १६ । दानलब्धियोळू अधस्तन प्रत्येकभंग प्रमाणमे प्रत्येकभंगप्रमाण१५ मो देवकुं । १ । आ प्रत्येकभंगमुमं द्विसंयोगभंगमुभ्रं कूडिदो डुपरितनदानलब्धिय द्विसंयोग प्रमाणमक्कं । ५ । चा अधस्तनद्विसंयोगमुमं त्रिसंयोगमुमं कूडिवोर्ड त्रिसंयोगभंगंगळ पत्तप्पुवुः | १० | अघस्तनत्रिसंयोगमुमं चतुःसंयोगमुमं कुडिवोर्ड चतुःसंयोगभंगंगळ पत्तप्पुवु । १० । आा चतुःसंयोगमं पंचसंयोगमं कूडिदोर्ड पंचसंयोगभंगंगळेयप्पुवु । ५। पंचसंयोगप्रमाणमे षट्संयोगमों वेयक्कुं । १ । कूडि दानलब्धियोळ भंगंगळ सुवर्त्त रडवु । ३२ । लाभपवदोळ प्रत्येकभंगमों दु १ । अघस्तन प्रत्येकभंगमं द्विसंयोगभंगमुमं कूडिदोर्ड द्विसंयोगभंगंगलारपुवु ६ । अधस्तन द्विसंयोगमुमं त्रिसंयोगमुमं कूडिजोडुपरितन त्रिसंयोग मक्कुमप्पुवरिदं 'त्रिसंयोगभंगंगळु पविनय् ॥ १५ ॥ अघस्तन त्रिसंयोगमुमं चतुःसंयोगमुमं कूडिवोडुपरितन चतुःसंयोग प्रमाणमप्पुदरिवं चतुःसंयोग१६३८४ । इदमेव प्रत्येकपदानामन्तधनं द्वाभ्यां संगुण्यैकरूपेऽपनीते स्वेष्टस्थाने सर्वधनं स्यात् ६५ = १ । २ । ४ । गो० कर्मकाण्डे ० Jain Education International रखकर परस्पर में गुणा करनेपर सोलह हजार तीन सौ चौरासी होते हैं। इतने ही जीवपदके १५ भंग हैं । उस इष्टधनको दूना करके उसमें से एक घटानेपर जो प्रमाण रहे उतना प्रथमपदसे लेकरं विवक्षितपदपर्यन्त सब पदके भंगका जोड़रूप सर्वधन होता है । जैसे विवक्षित जीवपद पन्द्रहका इष्टधन पण्णट्ठीका चौथा भाग है । उसको दूना करके उसमें से एक घटानेपर प्रथमपदसे लेकर पन्द्रहवें पदपर्यन्त सब पदोंके भंगोंके जोड़का प्रमाण होता है। तथा जो जीवपद में इष्टधन कहा उसका दूना आधा पण्णट्टी प्रमाण होता है उतने भव्यभावके भंग ३० हैं और उतने ही अभव्यभावके भंग हैं। दोनोंके मिलकर पण्णट्टी प्रमाण भंग होते हैं। उनको दूमा करनेपर एक गतिके भंग होते हैं । सो नरक, तिर्यच, मनुष्य, देवगतिके इतने इतने भंग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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