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________________ १२०६ गो० कर्मकाण्डे संयोग मंगळ पंच रूपोनगच्छेय चतुर्वार संकलन मात्रंगळप्पुवु माग लब्धं २००२ । २००२ । सप्तसंयोग भंगंगळ, नवसंयोग भंगंगळ षडू पोनगच्छेप पंखवार संकलन ९ | १०|११|१२|१३|१४| लब्धं ३००३ ।३००३ । अष्टसंयोग भंगंगळ सप्तरूपोन ६ |५|४ | ३ |२| १ । गच्छेय षड़वार संकलनमा त्रंगळप्पुवु लब्ध ३४३२ । कूडि प्रत्येक |८|९/१०/११/१२/१३/१४ ७|६|५|४ | ३ | २ | १ ५ पदंगळोळ, पविनध्वर्नय जीवभावदोळ, पदिनाद सासिरद मूनूरणभत्तनात्कु भगलप्पुषु १६३८४ । २० १० | ११ | १२ | १३ | १४ ५ | ४ | ३ |२ । १ पंचसंयोगा एकादश संयोगाश्च चतुरूपोनगच्छस्थ त्रिकवारसंकलनमात्राः ११ । १२ । १३ । १४ लब्धं ४ । ३ । २ । १ १००१ । १००१ । षट्संयोगा दशसंयोगाश्व पंचरूपोनगच्छस्य चतुर्वार संकलनमात्रा: १० । ११ । १२ । ५।४।३। १३ । १४ लब्धं २००२ । २००२ । सप्तसंयोगा नवसंयोगादव षड्रूपोनगच्छस्य पंचवारसंकलन मात्रा:२ । १ ९ । १० । ११ । १२ । १३ । १४ लब्धं ३००३ | ३००३ | अष्टसंयोगाः सप्तरूपोनगच्छस्य षड्वार संकलन६।५।४।३।२।१ १० मात्राः ८ । ९ । १० | ११ | १२ | १३ | १४ लब्धं ३४३२ । मिलित्वा तत्र षोडशसहस्रत्रिशतचतुरशोति७।६।५।४।३।२ । १ हजार एक हैं। छह संयोगी और दस संयोगी भंग पाँच हीन गच्छका चार बार जोड़मात्र होनेसे दो हजार दो, दो हजार दो हैं। सात संयोगी और नौ संयोगी भंग छह हीन गच्छका पाँच बार जोड़मात्र हैं अतः तीन हजार तीन, तीन हजार तीन हैं। आठ संयोगी भंग सात हीन गच्छका छह बार जोड़मात्र हैं अतः चौंतीस सौ बत्तीस हैं। ये सब मिलकर पन्द्रहवें जीवपदके सोलह हजार तीन सौ चौरासी भंग होते हैं । यह पण्णट्ठीका चौथा भाग है क्योंकि पैंसठ हजार पाँच सौ छत्तीसको पण्णट्ठी कहते हैं । १५ विशेषार्थ - यहाँ जीवपद पन्द्रहवाँ होनेसे गच्छका प्रमाण पन्द्रह है। दो हीन गच्छका एक बार जोड़ करनेके लिए पूर्वोक्त सूत्र के अनुसार तेरह, चौदहको परस्पर में गुणा करे । फिर दो और एकको परस्पर में गुणा करके उसका भाग देनेपर इक्यानबे होते हैं। तीन हीन गच्छका दो बार जोड़ करनेके लिए बारह, तेरह, चौदहको परस्पर में गुणा करके, फिर तीन, दो, एकको परहारमें गुणा करके उससे भाग देनेपर तीन सौ चौंसठ होते हैं। चार हीन गच्छका तीन बार जोड़ करनेके लिए ग्यारह, बारह, तेरह, चौदहको परस्पर में गुणा करके और उसमें चार, तीन, दो, एकको परस्परमें गुणा करके उससे भाग देनेपर एक हजार एक होते हैं । पाँच बार गच्छका चार बार जोड़नेके लिए दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदहको २५ परस्पर में गुणा करके उसमें पाँच, चार, तीन, दो, एकको परस्पर में गुणा करके उससे भाग देने पर दो हजार दो होते हैं। छह हीन गच्छका पाँच बार जोड़ करनेके लिए नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदहको परस्पर में गुणा करके उसमें छह, पाँच, चार, तीन, दो, एकको परस्परमें गुणा करके उससे भाग देनेपर तीन हजार तीन होते हैं। सात हीन गच्छका 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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