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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६८३ प्रकृतिगळ्गे बंधोदयोदोरणासत्वंगळं गाथाषट्कदिदं पेळ्दपरु : छसु सगविहमढविहं कम्मं बंधंति तिसु य सत्तविहं । छव्विहमेक्कट्ठाणे तिसु येक्कमबंधगो एक्को ॥४५२॥ षट्सु सप्तविधमष्टविधं कम बनाति त्रिषु च सप्तविधं । षड्विधमेकस्थाने त्रिष्वेकमबंधक एकः ॥ मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि देशसंयत प्रमत्तसंयता प्रमत्तसंयतरेंबारुगुणस्थानत्तिगळायुज्जितमागि सप्तमूलप्रकृतिस्थानमुमनायुष्यसहितमागष्टमूल पकृतिस्थानमुमं कटुवरु । मिश्रापूर्वानिवृत्तिकरणरब मूलं गुणस्थानत्तिगळायुवज्जितम्प्रगिये सप्तमूलप्रकृतिस्थानमं कटुवरु । सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानवत्तियोवने आयुर्मोहज्जितषण्मूलप्रकृतिस्थानमं कटुगुं। उपशांतकषायक्षीणकषायसयोगकेवलिगळेब मूरु गुणस्थानतिगळो दे वेदनीयमूलप्रकृतिस्थानमं १० कटुगुं। मूलप्रकृतिगळबंधकनोवने अयोगिकेवलिगुणस्थानवत्तियमितष्टविधमूलप्रकृतिस्थानं. गळ्गे गुणस्थानसंदृष्टि : मि | सा | मि | अ | दे । प्र अ अ असू। उक्षी स| अ ।७८ । ७।८। ७८ | ७८ | ७८ ७८|७८/७/७/६/१|१|१| | बं चत्तारि तिणितियचउ पयडिहाणाणि मुलपयडीणं । भुजगारप्पदराणि य अवट्ठिदाणि वि कम होंति ॥४५३॥ चत्वारि त्रीणि त्रिक चतुः प्रकृतिस्थानानि मूलप्रकृतीनां । भुजाकाराल्पतरावस्थिता अपि १५ क्रमेण भवंति ॥ तावद् गुणस्थानेषु मूलप्रकृतीनां बंधोदयोदोरणसत्त्वभेदं गाथाषट्केनाह मिश्रवजिताप्रमत्तांतषड्गुणस्थानेषु विनायुः सप्तविधं तत्सहितमष्टविधं च कर्म बध्नति । मिश्रापूर्वानिवृत्तिकरणेषु तत्सप्तविधमेव । सूक्ष्मसांपराये आयुर्मोहवजितं षविधमेव । उपशांतक्षीणकषायसयोगेष्वेक वेदनीयमेव । अयोगे बंधो नास्ति ॥४५२॥ समाधान-एक जीवके एक समयमें जितनी प्रकृतियाँ सम्भव हैं उनके समूहका नाम स्थान है। उसका कथन इस अधिकारमें है ॥४५१।। गुणस्थानोंमें मूल प्रकृतियों के बन्ध, उदय, उदीरणा और सत्त्वको लिये स्थान समुकीर्तनको छह गाथाओंसे कहते हैं मिश्र गुणस्थानको छोड़कर अप्रमत्त पर्यन्त छह गुणस्थानोंमें आयु बिना सात प्रकार २५ अथवा आयु सहित आठ प्रकारका कर्मबन्ध होता है। मिश्र, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणमें आयुके बिना सात प्रकारका ही कम बँधता है। सूक्ष्मसाम्परायमें आयु और मोहके बिना छह प्रकारका ही कम बँधता है। उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय और सयोगीमें एक वेदनीय कर्म ही बँधता है । अयोगीमें कर्मबन्ध नहीं होता ॥४५२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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