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________________ स्थान समुत्कीर्तनाधिकार ॥५॥ इंतु त्रिचूलिकाधिकारनिरूपणानंतरं नेमिचंद्रसैद्धांतचक्रवतिगळु बंधोदयसत्वयुक्तस्थानसमुत्कीर्तनाधिकारमं पेळलुपकमिसुत्तं तदादियोळु निजेष्टदेवताविशेषमं नमस्कारमं माडिदपरु : णमिण णेमिणाहं सच्चजुइद्विरणमंसियंघिजुगं । बंधुदयसत्तजुत्तं ठाणसमुक्कित्तणं बोच्छं ।।४५१॥ नत्वा नेमिनाथं सत्ययुधिष्ठिरनम कृतांघ्रियुगं । बंधोदयसत्वयुक्तं स्थानसमुत्कीर्तनं वक्ष्यामि । प्रत्यक्षवंदकनप्प सत्ययुधिष्ठिरनमस्कृतांघ्रियुग्मनप्पनेमिनाथनं नमस्कारमं माडि बंधोदयसत्वयुक्तमप्प स्थानसमुत्कीर्तनम पेकदपेनिने दिताचार्य्यनप्रतिज्ञेयकुं॥ स्थानसमुत्कीर्तनमेनु निमित्तं बंदुदें दोडे मुन्न प्रकृतिस पुत्कीर्तनदिदमावुवु केलवु प्रकृतिगळु प्ररूपिसल्पटुववक्के १० बंधमेनु क्रमदिदमक्कमो मेगकदिदमकुमो ये दितु प्रश्नमागुत्तं विरलु ई प्रकारदिदमक्कु में दितरियल्वेडिबंदुदिल्लि। स्थानमें बुदेंते दोडे-एकस्य जीवस्य एकस्मिन् समये संभवंतीनां प्रकृतीनां समूहः स्थानमें दितेकजीवक्केकसमयदोळ संभविसुवंतप्प प्रकृतिगळ समूहं स्थानम बुदक्कु । मा स्थानसमुत्कोत्तनं बंधोदयसत्वभेददिवं त्रिविधमकुमल्लि मुन्नं गुणस्थानदोळु मूल एवं त्रिचूलिकाधिकारं निरूप्य श्रीमन्नेमिचन्द्रसिद्धांतचक्रवर्ती निजेष्टदेवताविशेषनमस्कारपुरस्सरमुत्तर१५ कृत्यामिधेयं प्रतिजानोते प्रत्यक्षवंदारुसत्ययुधिष्ठिरनमस्कृतांघ्रियुगं नेमिनाथं नत्वा बंधोदयसत्वयुक्त स्थानसमुत्कीर्तनं वक्ष्ये । तकिमर्थमागतं ? पूर्व प्रकृतिसमुत्कीर्तने याः प्रकृतयः उक्तास्तासां बंधः क्रमेणाक्रमेण वेति प्रश्ने एवं स्यादिति ज्ञापयितं । कि स्थानं ? एकस्य जीवस्यै कस्मिन् समये संभवंतीनां प्रकृतीनां समूहः ।।४५१॥ तत्स्थानसमुत्कीर्तनं इस प्रकार त्रिचूलिका अधिकारको कहकर श्रीमान् नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती अपने २० इष्टदेवको नमस्कार करके आगेके कार्य करने की प्रतिज्ञा करते हैं प्रत्यक्ष वन्दना करनेवाले सत्यवादी युधिष्ठिरके द्वारा जिनके चरणयुगल नमस्कार किये गये हैं उन नेमिनाथको नमस्कार करके बन्ध, उदरा और सत्त्वसे युक्त स्थानसमुकीर्तनको कहूँगा। शंका-वह किस प्रयोजनसे कहेंगे? समाधान-पहले प्रकृति समुत्कीर्तन अधिकार में जो प्रकृत... कही हैं उनका बन्ध आदि क्रमसे होता है या बिना क्रमसे होता है ? ऐसा प्रश्न होनेपर इस प्रकारसे होता है यह बतलाने के लिए यह स्थानसमुत्कीतन अधिकार कहते हैं । शंका-स्थान किसे कहते हैं ? २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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