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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६८१ र्षणंगळ्गं कुडल्बारदें बुददु अपूर्वकरणगुणस्थानपर्यंतमयक्कुल्लिदं मेलणगुणस्थानंगळोळु यथासंभवमागि शक्यमें बुदत्थं ॥ इंतु भगवदहत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदित पुण्यपुंजायमान श्रीमद्रायराजगुरुमंडलाचाय॑महावादवादीश्वररायवादिपितामह सकलविद्वज्जनचक्रवत्तिश्रीमदभयसूरि सिद्धांतचक्रवत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्ट श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति- ५ जीवतत्वप्रदीपिकयोळ कर्मकांड दशकरण तृतीयचूलिकाधिकारं व्याख्यातमादुदु ॥ निकाचितकरणद्रव्यं उदयावलिसंक्रमोत्कर्षणापकर्षणेषु निक्षेप्तुमशक्यं तत् अपूर्वकरणगुणस्थानपयंतमेव स्यात् । तदुपरि गुणस्थानेषु यथासंभवं शक्यमिथः ॥४५०।। इति दशकरणचूलिका । इत्याचार्यश्रीनेमिचंद्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपंचसंग्रहवती जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां कर्मकांडे त्रिचूलिकानामचतुर्थोऽधिकारः ॥४॥ अपकर्षणरूप होनेमें समर्थ नहीं है वह निकाचितकरण द्रव्य है। ये तीनों करण अपूर्वकरण गुणस्थान पर्यन्त ही होते हैं। उससे ऊपरके गुणस्थानोंमें यथासम्भव शक्यता जानना ।।४५०॥ १५ इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें कर्मकाण्डके अन्तर्गत त्रिचूलिकानामक चतुर्थ अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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