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________________ ६८० गो० कर्मकाण्डे अनंतानुबंधिक्रोधमानमायालोभंगळगयं विसंयोजकपर्यंतमसंयतदेशसंयतप्रमत्ताप्रमत्तरोळ यथासंभवावसानमागियं अपकर्षण करणमक्कुं। मिथ्यादृष्टयाद्यसंयतपय्यंतं नरकायुष्यक्के मिथ्यादृष्टयादिदेशसंयतपथ्यंत तिर्यगायुष्यक्कयुमुदीरणकरणमुं सत्वकरणमुं उदयकरणमुं सिद्धं गळप्पुवु॥ मिच्छस्स य मिच्छोति य उदीरणाउवसमाहिमुहियस्स । समयाहियावलित्ति य सुहुमे सुहुमस्स लोहस्स ॥४४९॥ मिथ्यात्वस्य मिथ्यादृष्टिपर्यंतमुदीरणमुपशमाभिमुखस्य । समयाधिकावलिपय्यंतं च सूक्ष्मे सूक्ष्मस्य लोभस्य ॥ मिथ्यात्वप्रकृतिर्ग मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळयुदीरणाकरणमक्कुमुपशमसम्यक्त्वाभिमुखंगे समयाधिकावलिपर्यंतमुदीरणकरणमक्कुमेके दोडल्लि पय्यंतं मिथ्यात्वोदयमुटप्पुरिदं । सूक्ष्म१० सांपरायनोळे सूक्ष्मलोभक्कुदीरणमक्कु मेके दोडन्यगुणस्थानदोळु तदुदयमिल्लप्पुरिदं ॥ उदये संकमुदये चउसुवि दादु कमेण णोसक्कं । उवसंतं च णिधत्ती णिकाचिदं तं अप्पुव्वोत्ति ॥४५०॥ उदये संक्रमोदययोश्चतुर्वपि दातुं क्रमेण नो शक्यं । उपशातं च निर्धात्त निकाचितं तदपूर्वपयंतं ॥ आउदो'दुपशांतमाद द्रव्यमनुदयावळियोळिक्कलु शक्यमल्ल । आउदोदु नियत्तिकरणद्रव्यम संक्रमोदयंगळ्गे कुडल्बारदु । आउदोंदु निकाचितकरणद्रव्यमनुदयावळिगं संक्रमक्कुमुत्कर्षणापक अनंतानुबंधिनां विसंयोजकपयंतं असंयतदेशसंयतप्रमत्ताप्रमत्तेषु यथासंभवावसानमपकर्षणं स्यात् । नरकायुषोऽसंयतपयंतं तिर्यगायुषो देशसंयतपयंतं चोदीरणासत्त्वोदयकरणानि सिद्धानि ॥४४८॥ मिथ्यात्वप्रकृतेमिथ्यादृष्टौ उपशमसम्यक्त्वाभिमुखस्य समयाधिकावलिपयंतं उदीरणाकरणं स्यात्, २० तावत्पर्यंतमेव तदुदयात् । सूक्ष्मलोभस्य च सूक्ष्मसांपराये एव अन्यत्र तदुदयाभावात् ।।४४९॥ यत् उपशांतद्रव्यं उदयावल्यां निक्षेप्तुमशक्यं यत् निधत्तिकरणद्रव्यं संक्रमणोदययोनिक्षेप्तुमशक्यं, यत् अनन्तानुबन्धी चतुष्कका अपकर्षण करण असंयत, देशसंयत, प्रमत्त, अप्रमत्तमें यथासम्भव जहाँ विसंयोजन होता है वहाँ पर्यन्त होता है। नरकायुका असंयत पर्यन्त, तिर्यगायुका देशसंयत पर्यन्त, उदीरणा, सत्त्व और उदय करण प्रसिद्ध हैं ॥४४८॥ मिथ्यात्व प्रकृतिका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें उपशम सम्यक्त्वके सम्मुख हुए जीवके एक समय अधिक आवली काल पर्यन्त उदीरणा करण होता है क्योंकि उतने पर्यन्त ही उसका उदय है। सूक्ष्मलोभका सूक्ष्मसाम्परायमें ही उदीरणा करण है क्योंकि उससे अन्यत्र उसका उदय नहीं है ।।४४९।। जो उदयावलीमें लाये जाने में समर्थ नहीं है वह उपशान्तद्रव्य है, जो संक्रम और ३० उदयमें लाने में समर्थ नहीं है वह निधत्तिकरण द्रव्य है, और जो उदयावली, संक्रम, उत्कर्षण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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