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________________ ११६० गो० कर्मकाण्डे औदयिकभावंगळ गतिचतुष्कम लिंगत्रितययम कसायचतुष्टयमं तथा मिथ्यात्वमं लेश्याषट्कमुमसिद्धत्वमुमसंयममुमज्ञानमुमें दितेकविंशतिप्रमितंगळप्पुवु ॥ जीवत्तं भव्वत्तमभव्बत्तादी भवंति परिणामा। इदि मूलुत्तरभावा भंगवियप्पे बहुजाणे ।।८१९॥ जीवत्वं भव्यत्वमभव्यत्वादयो भवंति परिणामाः। इति मूलोतरभावा भंगविकल्पे बहून् जानीहि ॥ जीवत्वम भव्यत्वमुमभव्यत्वमुमेंबिउ मोदलावउ पारिणामिकंगळप्पवितु मलभावंगळयदक्कमुत्तरभावंगळु त्रिपंचाशत्प्रमितंगळप्पुर्वेदरियल्पडुगु।। मूलभावंगळ्गमुत्तरभावंगळगं संदृष्टि :-औपशमिक २। क्षायिक ९ । क्षायोपमिक १० १८ । औदयिक २१ । पारिणामिक ३। इउ भंगविकल्पदोळु बहुविकल्पंगळप्पुवेंदु नोनरि भव्य । ओघादेसे संभवभावं मूलुसरं ठवेदूण । पत्तेये अविरुद्धे परसगजोगेवि भंगा हु ॥८२०॥ ओघे आदेसे संभवभावं मूलोत्तरं स्थापयित्वा । प्रत्येकेऽविरुद्ध परसुगयोगेपि भंगाः खलु ॥ ओघे गुणस्थानदोळं आदेशे मार्गणास्थानदोळं संभवभावं संभविसुव भावमं मूलोत्तरं १५ मलभावमनुत्तरभावेमं स्थापयित्वा स्थापिसि प्रत्येकेऽविरुद्धे आ स्थापिसिद मूलोत्तरभावदोळ औदयिकभावाः पुनः चतुर्गतिविलिंगचतुःकषायाः, तथा च मिथ्यात्वं षड्लेश्या असिद्धासंयमाज्ञानानि इत्येकविंशतिर्भवन्ति ॥८१८॥ जीवत्वं भव्यत्वं अभव्यत्वादयश्च पारिणामिकभावा भवन्ति । इत्येवं मलभावाः पंच उत्तरभावास्त्रि. पंचाशत् भंगविकल्पा बहव इति जानीहि ॥८१९।। २० गुणस्थाने मार्गणास्थाने च सम्भवतो मूलभावानुत्तरभावांश्च संस्थाप्याक्षसंचारक्रमेण प्रत्येके औदयिकभाव चार गति, तीन वेद, चार कषाय, एक मिथ्यात्व, छह लेश्या, असिद्ध, असंयम, अज्ञानके भेदसे इक्कीस हैं ।।८१८।। विशेषार्थ-सामान्यकमके उदयरूप सिद्ध पदका अभाव असिद्धत्व है। चारित्रमोहके सर्वघाती स्पर्द्धकोंके उदयसे चारित्रका अभाव असंयम है। ज्ञानावरणके उदयसे जो ज्ञान २५ प्रकट नहीं वह अज्ञान है । मिथ्यादृष्टि छद्मस्थके जितना ज्ञान प्रकट होता है वह क्षयोपशम रूप अज्ञान है जिसे मिथ्याज्ञान कहते हैं। और जितना ज्ञान प्रकट नहीं है सब जीवोंके वह अज्ञान औदयिक है ।।८१८॥ ___ जीवत्व भव्यत्व अभव्यत्व आदि पारिणामिक भाव होते हैं। इस प्रकार मूलभाव पाँच हैं उत्तरभाव तरेपन हैं इनके भंग विकल्प बहुत हैं ।।८१९।। विशेषार्थ-जीवत्व तो द्रव्य स्वभाव है ही। भव्यत्व अभव्यत्व भी किसी कमके निमित्तसे नहीं होते, अनादि हैं । अतः इन्हें पारिणामिक कहा है ॥ १. म परस्वयो । 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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