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________________ ११५० गो० कर्मकाण्डे अध्रु ४ । भंगंगळु ८६४ ॥ अपूर्वकरणंगे ध्र २९६ । अध्र ४ । भंगंगळु ८६४ ॥ अनिवृत्तिकरणंगे १०८ । ७२ । ३६ । २७ । १८।९। कूडि २७० ॥ सूक्ष्मसांपरायंगे भंगंगळु ९॥ उपशान्त कषायगे भंगंगळु ९ । क्षीणकषायंगे भंगंगळु ९ ॥ सयोगिकेवलि भट्टारकंगे भंगंगळ ७ ॥ अयोगिकेवळिस्वामियोळु प्रत्ययं शून्यमक्कु॥ ___ अनंतरमी प्रत्ययोदयकार्य्यभूतजीवपरिणामंगळु ज्ञानावरगादिकम्मंगळगे बंधकारणंगळे दु तत्प्रतिपत्त्यर्थमागि पेळदपरु : तथाकृतषष्टयधिकत्रिशतद्वयंशे तथाकृत चतुर्विशतिपंचहारेण भक्ते लब्धं पंचसंयोगाः षट् । पुनः तथ कृत. विंशत्यधिकसप्तशतकांशे तथाकृतविंशत्यधिकशतषट्वारेण भक्ते लब्धं पटसंयो। एकः, मिलित्वा त्रिषष्टिः । प्रत्येकं मिथ्यादृष्टयादिचतुष्के संयोगगुणकारा भवन्ति । तथा पंचादीने कपयंगानं कान् संस्थाप तदवोहाराने हा२० दानकात्तरान् संस्थाप्य-५ । ।।२। । प्राग्वद् भक्त्वा लब्धं प्रत्येक भंगाः पंच। | १ | २ | ३ | ४ । ५ । द्विसंयोगा दश । त्रिसंयोगा दश । चतुःसंयोगा: पंच । पंचसंयोग एकः, मिलित्वैकविहे शसंयते संयोगगुणकार: स्यात् ॥७९९।। अथ प्रत्ययोदयकायजीवपरिणामानां ज्ञानावरणादिबंधकारणत्वे प्रतिपत्तिमाह २० उनको पूर्व एक सौ बीससे आगेके छहको गुणा करनेपर हुए हार सात सौ बीसका भाग देनेपर एक आया। छह संयोगी भाग एक हुआ । इस तरह सब मिलकर वेसठ भंग हुए । देशसंयतमें त्रसबध न होनेसे पाँचकी ही हिसा है। जो क्रमसे पाँचसे एक पर्यन्त लिखो । उनके नीचे एकसे पांच पर्यन्त हार लिखो यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकारसे पाँचको एक का ||४|३|| 6 भाग देनेपर पाँच आये। सो इतने प्रत्येक भंग हैं। आगे पाँचसे चारको |१|२|३|४|| | गुणा करनेपर बीस अंश हुए । उसको एकसे गुणित दो हारका भाग देने ' पर दस आये । इतने द्विसंयोगी हुए। पुनः बीससे गुणित तीन अंशको दो से गुणित तीन हारका भाग देनेपर दस आये। इतने त्रिसंयोगी भंग हुए। पुनः साठसे गुणित दो अंशोंको छहसे गुणित चार हारका भाग देनेपर पाँच आये। इतने चतुःसंयोगी हए। पुनः एक सौ बीससे गुणित एक अंशको चौबोससे गुणित पाँच भागहारका भाग एक आया । एक पंचसंयोगी भंग हुआ। ये सब मिलकर देशसंयतमें कायबधके इकतीस भेद होते हैं। ये कायबध सम्बन्धी अध्र व गुणकार हैं सो छह कायकी हिंसामें पृथ्वी अप तेज वायु वनस्पति त्रसमेंसे एक-एक की हिंसा करनेसे प्रत्येक भेद छह हुए। पुनः पृथ्वी अपकी, पृथ्वी तेजकी, पृथ्वी वायुकी, पृथ्वी वनस्पतिकी, पृथ्वी त्रसकी, अप तेजकी, अप वायुकी, अप वनस्पतिकी, अप् त्रसकी, तेज वायुकी, तेज वनस्पतिकी, तेज त्रसकी, वायु वनस्पतिकी, वायु सकी, वनस्पति त्रसकी हिंसाके भेदसे द्विसंयोगी पन्द्रह हुए। इसी प्रकार आगे भी जानना ॥७९९॥ ___ आगे प्रत्ययोंके उदयके कार्य जो जीवके परिणाम हैं उन्हें ज्ञानावरण आदिके बन्धका कारण बतलाते हैं २५ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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