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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका ११३७ | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ २ | ३ ३ ३ ३ २ १ मुन्नं पेळल्पट्ट अनंतानुबंधिरहितकूटत्रयद पदिनेंटु स्थानंगळ मनी पेळ्दनंतानुबंधियुतकूटत्रयद पदिने टुं स्थानप्रकारंगळ मं कूडुत्तं विरलु षट्त्रिंशत्प्रत्ययस्थानप्रकारंगळप्पुववनितक्कं संदृष्टि रचने :- | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | ई प्रकारविंद १ ३ ५। ६ ६ ६ ५ २ १ | सासादनप्रथमकूटदोळ दशादिषट्स्थानप्रकारंगळप्पुवु । द्वितीयकूटदोळ एकावशाविषट्स्थानंगळप्पुवु। तृतीयकूटदोछ, द्वादशादिषट्स्थानप्रकारंगळप्पवितष्टदशस्थानप्रकारंगळप्पुवु। ५ १०।११।१२।१३।१४|१५| इवं कूडिदोडे सासादनंगे १०।११।१२।१३।१४ार ५१६/१७॥ १११२|१३|१४|१५/१६ | १|२| ३| ३| ३|३|२|१| |१२|१३|१४|१५|१६/१७ मिश्रन त्रिकूटंगोळ | ९| १० | ११ | १२ | १३ | १४ | कूडि मिअंगे |१०| ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | ९| १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | असंयत सम्यग्दृष्टिग | ९|१०|१२|१२१३|१४| | १| २ | ३ | ३ | ३ | ३ | २ | १ | १०/११/१२/१३/१४/१५ १२१२/१३/१४/१५/१६] पंचदशकस्य त्रयः १५ षोडशकस्य त्रयः १६ सप्तदशकस्य द्वौ १७ अष्टादशकस्यैकः १८ एतेषु प्रागुक्ताष्टादशसु मिलितेषु षट्त्रिंशद्भवन्ति । तत्संदृष्टिः | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | एवं सासादनस्य प्रथमकूटे दशकादीनि षट् । द्वितीये एकादशकादीनि षट् । तृतीये द्वादशकादीनि षट् । १० १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ ११ । १२ | १३ | १४ | १५ | १६ १२ । १३ | १४ | १५ | १६ | १७ मिलित्वाष्टादश मिश्रस्य त्रिकूटेषु- ९ । १० । ११ । १२ | १३ | १४ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ । ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ । ही है और अठारहका आस्रव अनन्तानुबन्धीसहित अन्तिम कूटमें ही है। इसी तरह म्यारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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