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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरु मंडलाचार्य्यं महावादवादीश्वर रायवादीपितामहसकल विद्वज्जनचक्रवत श्रीमदभयसूरि सिद्धांत चक्रवत्तिचारुचरणारविंदरजो रंजित ललाटपट्ट् श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसार कर्नाट वृत्तिजीवतत्वप्रदोपिकेयोळु कर्मकांड बंधोदय सत्वयुक्तस्थानप्ररूपणमहाधिकारं निरूपितमादुदु ॥ बन्धादिषु द्वित्रिसंयोगाः प्ररूपिताः एव श्रुतवनवसतगुणगणसागर चंद्रेण सन्मतिना ॥ ७८४ ॥ इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपंचसंग्रहवृत्तो जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां कर्मकांडे बन्धोदय सत्त्वस्थानप्ररूपणो नाम पंचमोऽधिकारः ॥५॥ ११२१ इस प्रकार नामकर्म के बन्ध उदय सत्त्वस्थानों में द्विसंयोगी- त्रिसंयोगी भंग जैनागमरूपीवनको विकसित करने में वसन्तऋतुके समान और गुणसमूहरूपी समुद्रके लिए चन्द्रके समान भगवान् महावीरने कहे हैं ||७८४|| इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोभित ललाटवाले श्री केशवaणके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाको अनुसारिणी संस्कृतटोका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाको अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें कर्मकाण्डके अन्तर्गत बन्ध-उदय सरवस्थान प्ररूपणा नामक पाँचवाँ अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥ ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५ १० १५ www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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