SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका अण्णोष्ण भत्थं पुण पल्लमसंखेज्जरूवगुणिदकमा । संखेज्जवगुणिदं कम्मुक्कस्सठिदी होदि || ४३३ ॥ अन्योन्याभ्यस्तः पुनः पत्यमसंख्येयरूप गुणितक्रमौ । संख्येयरूपगुणिता कम्र्मोत्कृष्टस्थितिब्र्भवति ॥ पुनरन्योन्याभ्यस्त राशिः मत्ता स्थितिगुणहान्यायाममं नोडलुमन्योन्याभ्यस्त राशि असंख्यात - गुणितमक्कु पदोवु नानागुणहानिशलाका मात्रद्विक संवर्ग संजनितमन्योन्याभ्यस्त राशि व पुर्दारवं । पल्यवर्गश लाकाराशिविभक्तपल्यत्र मितमक्कुम पुर्दारदम संख्यातगुणितत्वं सिद्धमक्कु मदं नोडलु पत्यमसंख्यातगुणितमवकुमन्योन्याभ्यस्त राशियं पल्यवर्गशलाकाराशिथिवं गुणिसिदोर्ड पत्यमक्कुमप्पुरिदं प आपल्य नोडलु कर्मोत्कृष्टस्थिति संख्यातरूपगुणितमक्कु प १ मा गुणकारभूत संख्यातप्रमानमनरियल्वेडि त्रैराशिकं माडल्पडुगुमदे तें दोर्ड एकसागरोपमवर्क पत्तु १० कोटी कोट पल्यंगळागुतं विरलेप्पत्तु कोटोकोटिसागरोपमंगळगेनितु पल्यंगळपुर्व दितु । प्र । सा १ । फप १० । को २ । इसा । ७० । को २ | बंद लब्धं सप्ततिचतुरकोटिपल्यंगपुवप्पुदरिवं गुणकारभूत संख्यात प्रमाणं सिद्धमादुदु ॥ 1 अंगुल असखभागं विज्झादुव्वेन्लणं असंखगुणं । अणुभागस्स य णाणागुणहाणिसला अनंताओ ||४३४|| अंगुला संख्यात भागो विध्यात उद्वेल्लनोऽसंख्यगुणोऽनुभागस्य अनंताः ॥ ६७१ Jain Education International नानागुणहा निशलाका प a १ ततोऽन्योन्याभ्यस्तराशिरसंख्यातगुणः प नानागुणहानिमात्र द्विक संवर्गसमुत्पन्नत्वात् । ततः पत्यमछे-व-छे संख्यातगुणं पल्यवर्गशलाकागुणितत्वात् प । ततः कर्मोकृष्टस्थितिः संख्यातगुणा प १ । यद्येकसागरोपमस्य दशकोटाको टिपल्यानि तदा सप्ततिकोटाकोटीनां कतीति सप्ततिचतुर्वारकोटिगुणकारसंभवात् । ततो विध्यातसंक्रम- २० For Private & Personal Use Only १५ उससे कर्म की स्थितिकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण असंख्यातगुणा है; क्योंकि नाना गुणानि प्रमाण दोके अंक रखकर उन्हें परस्पर में गुणा करनेपर अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण होता है। उससे पल्यका प्रमाण असंख्यातगुणा है; क्योंकि उस अन्योन्याभ्यस्त राशि के प्रमाणको पल्य की वर्गशलाकासे गुणा करनेपर पल्य होता है। उससे कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण संख्यातगुणा है, क्योंकि एक सागरके दस कोड़ाकोड़ी पल्य होते हैं तो २५ बहत्तर कोड़ाकोड़ी सागरके कितने होंगे। चार बार एक कोटिसे सात सौको गुणा करे उतने पल्य हुए। उससे विध्यात संक्रमण भागहार असंख्यातगुणा है । वह सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । सो विध्यात संक्रमणकी प्रकृतियोंके परमाणुओंको उसका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उतने परमाणु जहाँ अन्य प्रकृतिरूपसे परिणमन करें वहाँ विध्यात संक्रम जानना । उससे उद्वेलन भागहार असंख्यातगुणा है । वह भी सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग ३० प्रमाण है । सो उद्वेलन प्रकृतिके परमाणुओंको उससे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उतने क- ८५ www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy