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________________ ६७० गो० कर्मकाण्डे तत्तो पल्लसलायच्छेदहिया पल्लछेदणा होति । पल्लस्स पढममूलं गुणहाणोवि य असंखगुणिदकमा ॥४३२।। ततः पल्यशलाकाचछेदाधिकाः पल्यच्छेदना भवंति । पल्यस्य प्रथममूलं गुणहानिरपि चाऽसं. ख्यातगुणितक्रमाः॥ ततः आ स्थितिनानागुणहानिशलाकेगळं नोडलं पल्यवर्गशलाकार्द्धच्छेदाधिकंगळु पल्यार्द्धच्छेदशलाकेगळप्पुवु । छ । अदु कारणमागि नानागुणहानिशलाकेगळ पल्यवर्गशलाकार्द्धच्छेदराशिविरहितपल्यार्द्धच्छेदप्रमितंपळे दु पेळल्पटुवु। अपि आ पल्यच्छेदशलाकेगळं नोडलुं पल्याथम. मूलमसंख्यातगणितमक्कु मू १ मते दोडे द्विरूपवर्गधारयोळु पल्यच्छेदराशियिदं मेले पल्यप्रथ ममूलमसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदु पुटिदुदप्पुरिदं । च अदं नोडलु स्थितिगुणहान्यायाममसंख्यात१. गुणितमक्कु ५१ मते दोडा प्रथममूलगणकार सप्ततिचतुर्वारकोटिपल्यप्रथममूलंगळं स्थितिनानागुणहानिशलार्केगळिदं भागिसिदेकभागमप्पुरदं। मू १। मू १।७० । को ४ गुणिसिदो. छे व छ डिदु। ११॥ यो गुणकारः सोऽसंख्यातगुणेऽपि पल्यच्छेदासंख्यातेकभागः छ । तु-पुनस्ततः स्थिते नागुणहानिशलाकाराशिर संख्यातगणोऽपि पल्यवर्गशलाकार्धच्छेदोनपल्यार्धच्छेदमात्रः छे-व-छे । ततः पल्यार्धच्छेदशलाकाराशिः १५ पल्यवर्गशलाकार्धच्छेदाधिकः छे अपि ततः पल्यप्रथममूलमसंख्यातगुणं मू १, द्विरूपवर्गधारायां तस्योपर्यसंख्यातवर्गस्थानान्यतीत्योत्पन्नत्वात् । च ततः स्थितिगुणहान्यायामोऽसंख्यातगुणः ११ स्थितिनानागण छे-व-छे हानिशलाकाभक्तसप्तति चतुर्वारकोटिगुणितपल्यप्रथममूल वर्गमात्रत्वात् मू १ मू १७० को ४ गुणिते सत्येवं । छे-व-छे भाग है। सो जो अधःप्रवृत्त संक्रमण रूप प्रकृतियाँ हैं उनके परमाणुओं में इसका भाग देनेसे जो प्रमाण आवे उतने परमाणु अन्य प्रकृतिरूप होकर जहाँ परिणमे वहाँ अधःप्रवृत्त संक्रमण २० जानना। इससे योगोंके कथनमें जो गुणकार कहा है वह असंख्यात गुणा है । तथापि वह भी पल्यके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवे भाग है। उससे जघन्य योगस्थानको गुणा करनेपर उत्कृष्ट योगम्थान होता है। इससे कर्मों की स्थितिको नानागुणहानि शलाकाका प्रमाण असंख्यात गणा है। सो पल्यके अर्धच्छेदोंमें-से पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंको घटानेपर जो प्रमाण रहे उतना है। उससे पल्यके अर्धच्छेदोंका प्रमाण अधिक है। सो पल्यकी वर्गशलाकाके २५ जितने अर्धच्छेद होते हैं उतना अधिक हैं। उससे पल्यका प्रथम वर्गमूल असंख्यातगुणा है। क्योंकि द्विरूपवर्गधारामें पल्यके अर्धच्छेदरूप स्थानसे असंख्पात स्थान जानेपर पल्यका प्रथम वर्गमूल होता है। उससे कर्मको स्थितिको एक गुणहानिके समयोंका प्रमाण असंख्यात गुणा है। क्योंकि सात सौ को चार बार एक कोटिसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उससे गुणित पल्यको स्थितिकी नाना गुणहानिके प्रमाणका भाग देनेपर यही प्रमाण आता है। ३० १. इदर अभिप्राय मुदेव्यक्तमादपुदु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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