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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका १०११ स्थानमुपशमशायिकसम्यग्दृष्टिगळोळे संभविसुगुमल्लियुपशमसम्यग्दृष्टि तिर्यग्मनुष्य देशसंयतरोळष्टाविंशति चतुविशति सस्वस्थानद्वय मा। क्षायिकसम्यग्दृष्टिमनुष्यनोळु एकविंशति सत्वस्थानमक्कु । नवप्रकृतिबंधकरुगळ प्रमताप्रमत्तसंयतरुगळप्पखर्गळोळु सप्तादिचतुरुदयस्थानंगळप्पुववर्गळमुपशमवेदकक्षायिकसम्यग्दृष्टि गळप्परल्लि वेदकसम्यग्दृष्टिगळोळे सप्तप्रकृतिस्थानोदयमक्कुमवरोळ अष्टाविंशति चतुविशति त्रयोविंशति द्वाविंशतिप्रकृतिस्थानचतुष्टयं सत्वमक्कु मुपशमवेदक क्षायिकसम्यग्दृष्टिसाधारणोदयषट्पंचप्रकृतिस्थानद्वयमप्पुरिदं मुपशमसम्यग्दृष्टिगळोळ मुन्नं त्रयोदशबंध नोळ पेन्दंते अष्टाविंशति चतुविशतिस्थानद्वयंसत्वमक्कु। वेदकसम्यग्दृष्टिगळोळु अष्टाविंशतिचतुविशति त्रयोविंशति द्वाविंशति सत्वस्थानंगळप्पुवु। क्षायिकसम्यग्दृष्टिगळोळु एकविंशतिस्यानमो दे सत्वमक्कु। मत्तमा नवबधकचतुःप्रकृत्युदयस्थानमुमुपशम क्षायिकसम्यग्दृष्टि प्रमत्ताप्रमतरुगळोळक्कु मल्लियुपशमसम्यग्दृष्टिगळोछु अष्टाविंशति चतुविशतिस्थानद्वयमक्कु। क्षायिकसम्यग्दृष्टिगळोळकविंशतिसत्वस्थानमो देयक्कु। नवबंधकापूर्वकरणनोळु षट्पंचचतुःप्रकृत्युदयस्थानत्रयमक्कु मल्लियुपशमसम्यग्दृष्टियोळु अष्टाविंशति चतुविशतिस्थानद्वयं सत्वमक्कु । क्षायिकसम्यग्दृष्टियोळेकविंशतिस्थानमो देसत्वमक्कु। पंचचतुःप्रकृतिबंधकननिवृत्तिकरणनेयक्कु मल्लि द्विप्रकृत्युदयस्थानमो दे. त्रिद्वयविंशतिके च, क्षायिकसम्यक्त्वे देशसंयतस्य मनुष्यत्वादेकविंशतिकमेव । तत्पंचकोदये उपशमसम्यग्दृष्टितिर्यग्मनुष्येऽष्टचतुरविशति के द्वे, क्षायिकसम्यग्दष्टिमनुष्ये एकविंशतिकमेव । नवकबन्धे प्रमत्ताप्रमत्ते चतुर्षदयस्थानेषु सप्तकोदये वेदकसम्यक्त्वे सत्त्वमष्टचतुस्त्रिद्वयाविंशतिकानि ! षट्कपंचकोदये उपशमसम्यक्त्वेऽष्टचतुरनविंशतिके द्वे । वेदकसम्यक्त्वे तद्वयं च त्रिद्वयप्रविशतिके च । क्षायिकसम्यक्त्वे एकविंशतिकमेव । तच्चतुष्कोदये उपशमसम्यक्त्वेऽष्ट चतुरग्रविशतिके द्वे । क्षायिकसम्यक्त्वे एकविंशतिकमेव । नवकबन्धेपूर्वकरणे षट्कपंचकचतुष्कोदये सत्त्वमुपशमसम्यक्त्वेऽष्ट चतुरप्रविशतिके द्वे । क्षायिकसम्यक्त्वे एकविंशतिकमेव । २० तथा वेदक सम्यक्त्वी तिर्यच में भी वे ही दोनों तथा वेदक सम्यक्त्वी मनुष्यमें अठाईस, चौबीस, तेईस, बाईसका सत्व है। क्षायिक सम्यग्दृष्टी मनुष्य ही होता है । उसके इक्कीसका सत्त्व है। पाँचके उदयमें उपशम सम्यग्दृष्टी तियंच और मनुष्यमें अट्ठाईस और चौबीसका सत्त्व है। क्षायिक सम्यग्दृष्टी मनुष्य में इक्कीसका सत्त्व है। नौके बन्धसहित प्रमत्त अप्रमत्त में चार उदयस्थानों में से सातके उदयमें वेदकसम्यक्त्वी ही होता है । अतः अठाईस, चौबीस, ११ तेईस, बाईसके चार सत्त्व हैं। छह और पाँचके उदयमें उपशम सम्यक्त्वमें अठाईस और चौबीसका सत्त्व है । वेदक सम्यक्त्वमें अठाईस चौबीस तेईस बाईसका सत्त्व है। क्षायिक सम्यक्त्वमें इक्कीसका सत्त्व है। चारके उदय में उपशम सम्यक्त्वमें अठाईस, चौबीसका सत्त्व है। क्षायिक सम्यक्त्वमें इक्कीसका ही सत्त्व है। नौके बन्ध सहित अपूर्वकरणमें छह पाँच या चारके उदयमें उपशम सम्यक्त्वमें .. अठाईस चौबीसका सत्त्व है । क्षायिक सम्यक्त्वमें इकईसका सत्त्व है। पाँच, चारका बन्ध और दोके उदय सहित अनिवृत्तिकरणमें उपशम सम्यक्त्वमें अठाईस, चौबीसका और झायिक सम्यक्त्वमें इक्कीस, तेरह. बारह, ग्यारहका सत्त्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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