SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गो० कर्मकाण्डे सुररुं नारकरुमुत्कृष्टदिदं स्वभुज्यमानानुष्यं षण्मासावशिमागतं विरल परभवामुांगलं नरतिर्य्यगायुष्यंगळं कट्टुवरु | नररुं तिय्यंचरुं भुज्यमानायुष्यमुत्कृष्टदिदं त्रिभागशेषमागतं विरलु परभवायुष्यंगळ नाल्कुमं कट्टुवरु । सर्व्वायुष्यंग बंधयोग्यं गळवे बुदत्थं । भोगमा देवाउं छम्मासवट्ठगे पद्धति । इगिविगला णरतिरियं तेउदुगा सत्तमा तिरियं ॥ ६४० ॥ भोग भौमा देवायुः षण्मासावशिष्टे प्रबधनंति । एकविकला: नरतिर्य्यक् तेजोद्वितयाः सप्तमास्तिक् ॥ भोगभूमरुत्कृष्टदिदं भुज्यमानायुः षण्मासावशिष्टमादागळु देवायुष्यमनोंदने कट्टुवरु | एकेंद्रियंगळु विकलेंद्रियंगळं नरतिर्य्यगायुष्यमं कट्टुवरु | तेजस्कायिकंगळं वायुकायिकंगळं १० सप्तमपृथ्विजरुं तिर्य्यगायुष्यमने कट्टुवरु ॥ इंतायुबंधप्रकारं पेळल्प द नंतर मुदय सत्वप्रका रंगळं पेळ्दपरु : १५ ९८२ ३० सगसगगदीणमाऊ उदेदि बंधे उदिण्णगेण समं । दो सत्ता हु अबंधे एक्कं उदयागदं सत्तं || ६४१॥ स्वस्वगतीनामायुरुदेति बंधे उदीर्णकेन समं । द्वे सत्वे खल्वबंधे एकमुदयागतं सत्त्वं ॥ नारकतिग्मनुष्य दिविजरुगळ स्वस्वगतिगळायुष्यमे नियर्मादिदमुदधिसुगुं । परभवायुबंधमागुत्तं विरल उदयागतायुष्यसहितमागि आयुद्वितयं सत्त्वमक्कुं । परभवा युब्बंध मिल्ल दिरुत्तिरलु उदयागतमायुष्यमो दे सत्वमक्कु - परभवायुः स्वभुज्यमानायुष्युत्कृष्टेन षण्मासेऽवशिष्टे देवनारका नारं तैरश्चं च बध्नन्ति तद्धे स्युरित्यर्थः । नरतिर्यंचस्त्रिभागेऽवशिष्टे चत्वारि । भोगभूमिजाः षण्मासेऽवशिष्टे दैवं एकविकलेन्द्रिया २० नारं तैरश्चं च । तेजोवायवः सप्तमपृथ्वीजाश्च तैरश्चमेव । ६३९ - ६४० ॥ एवमायुर्बन्धस्य प्रकारमुक्त्वोदय सत्वयोराह - नारकादीनामेकं स्वस्वगत्यायुरेवोदेति सत्त्वं परभवायुर्बन्धे खलूदयागतेन समं द्वे स्तः । अवद्धायुष्ये सत्त्वमेकमुदयागतमेव ॥६४१॥ जिस आयुको वर्तमान में भोगते हैं उस भुज्यमान आयुके उत्कृष्टसे छह मास शेष २५ रहनेपर देव और नारकी परभव सम्बन्धी मनुष्यायु या तियंचायुको बाँधते हैं अर्थात् उस कालमें उस आयुको बाँधने के योग्य होते हैं। मनुष्य और तिर्यंच भुज्यमान आयुका तीसरा भाग शेष रहनेपर चारों आयुको बाँधते हैं । भोगभूमिया छह मास शेष रहनेपर देवायुको हो बाँधते हैं । एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय मनुष्यायु या तियंचायुको ही बांधते हैं। तेजकायिक वायुकायिक और सातवें नरकके नारकी तिचायुको ही बाँधते हैं ।। ६३९-६४०॥ इस प्रकार आयुबन्धके प्रकारको कहकर उदय और सत्त्वको कहते हैं नारी आदि अपनी-अपनी गति सम्बन्धी ही एक आयुका उदय होता है । सत्त्व परभवकी आयुका बन्ध होनेपर उद्यागत आयुके साथ दोका होता है । एक जो भोग रहे हैं और एक जो बाँधी है । किन्तु जिसने परभवकी आयु नहीं बांधी है उसके एक भुज्यमान आयुका ही सत्त्व होता है || ६४१ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy