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________________ वतत्त्वप्रदीपिका ९८१ चतुर्भगंगळप्पुर्व ते दोर्ड सासादनं तेजोवायुगळोळ पुटुवुदुमिल्लुच्चैर्गोत्रोद्वेल्लनमुं घटियिसु. दिल्लप्पुरिदं । मिश्रासंयतदेशसंयतरुगळोळ द्विभंगंगळप्पुववाउवे दोडे उच्चबंधोच्चोदयोभयसत्त्व १। उच्चबंधनीचोदयोभयसत्त्व १। यितु द्विभंगंगळक्कुं। प्रमत्तसंयतं मोदल्गोंडु सयोगकेवलि चरमसमयपयंतमें टु गुणस्थानंगळोळ उच्चबंधोच्चोदयोभयसत्त्वं ओदे भंगमक्कुमदेते दोडे सूक्ष्मसांपरायपय्यंतमुच्चबंधोच्चोदयोभयसत्त्वमिल्लं मेले सयोगिपथ्यंतमुच्चोदयोभयसत्त्वमुर्मेदितु ५ अयोगिकेवलिगुणस्थानदोळु उपरतबंधरप्पुरिदं उच्चोदयोभयसत्त्व-१ । उच्चोदयोच्चसत्वमितेरडु भंगंगळप्पुवु । संदृष्टि :|मि सा | मि | अ दे प्रअ | अ अ सू । उक्षी | स अ | |३४|२|२|२१||१|TR | अनंतरमायुष्यक्के त्रयोदश गाथासूत्रं गळिवं पेळदपरु : सुरणिरया णरतिरियं छम्मासव सिट्ठगे सगीउस्स । णरतिरि । सव्वाउं तिभागसेसम्मि उक्कस्सा ॥६३९॥ सुरनारका नरतिय्यंचौ षण्मासावशिष्टे स्वकायुष्ये। नरतिय्यंचः सर्वायूंषि विभागशेषे उत्कृष्टात्।। नेति चत्वारः तस्य तेजोद्वयेऽनुत्पत्तेरुच्चानुद्वेल्लनात । मिश्रादित्रये उच्चबन्धोदयोभयसत्त्वं उच्चबन्धनीचोदयोभयसत्त्वं चेति द्वौ द्वौ। प्रमत्तादिसूक्ष्मसाम्परायान्तमुच्चबन्धोदयोभयसत्त्वमित्येकः । उपरि सयोगान्तमच्चो. दयोभयसत्त्वमित्येकः । अयोगिजिने उच्चोदयोभयसत्त्वं उच्चोदयसत्त्वं चेति द्वौ ॥६३८॥ अथायुषस्त्रयोदश- १५ गाथासूत्रैराह मरकर तेजकाय, वायुकायमें उत्पन्न नहीं होता और न वहां उच्चगोत्रकी उद्वेलना ही होती है। अतः चार ही भंग होते हैं। मिश्र आदि तीनमें उच्चका बन्ध, उच्चका उदय, दोनोंका सत्त्व अथवा उच्चका बन्ध, नीचका उदय, दोनोंका सत्त्व ये दो-दो भंग हैं । प्रमत्तसे सूक्ष्मसाम्पराय पर्यन्त उच्चका बन्ध, उच्चका उदय, दोनोंका सत्त्व यह एक ही भंग है। ऊपर २० सयोगी पर्यन्त बन्धका अभाव है अतः उच्चका उदय, सत्त्व दोनोंका ऐसा एक ही भंग है। अयोगीमें उच्चका उदय, दोनोंका सत्त्व और उच्चका ही उदय सत्त्व ये दो भंग हैं ॥६३८।। ___ गुणस्थानों में गोत्रकर्म के भंगका यन्त्र | मिथ्यादृष्टि | सासादन मिश्रा. तीन प्रमत्तसे सू. सयो. अयोगी ब. नी. नी.उ उ नी नी. नी./उ उ उ उ उ . | 0 उ. नी. उ. उ नी.नी नी. उ. उ नी. उ_ नी. स./२२ २ २ नी २ २२२ | २। २ । आयुके भंग तेरह गाथाओंसे कहते हैं la Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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