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________________ अनंतरं गोत्र पेपरु : कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका णीचुच्चाणेक्कदरं बंधुदया होंति संभवट्ठाणे | दो सत्ता जोगिन्ति य चरिमे उच्चं हवे सत्तं ॥ ६३५ ॥ नीचोच्चयोरेकतरं बंधोदयौ भवतः संभवचस्थाने । द्वे सत्त्वेऽयोगिपर्यंतं चरमे उच्च भवेत्सत्वं ॥ उच्चनीचगोत्रंगळेरडुं बंधसंभविसुव स्थानदोळ उच्चनी चंगळो दो दु बंधोवयंगळप्पु । अयोगिद्विचरमसमयपय्र्यंत मुच्चनो चोभयसस्वमक्कुं । चरमसमयदोळ उच्चैर्गोत्रमोदे सस्वमक्कुं बं | नी | नी उ उ उ | नी | उ उ नी स | २ २ २ बन्ध सा. सा. अ. अ. उ. सा. अ. सा. अ. स. २ २ २ २ Jain Education International उच्चुव्वेन्दितेऊवाउम्मि य णीचमेव सत्तं तु । सेसिगिवियले सयले णीचं च दुगं च सत्तं ॥६३६॥ उच्चोद्वेल्लित तेजोवाय्वोश्च नोचमेव सत्त्वं तु । शेषैकविकले सकले नीचं च द्विकं च १० ब. उ. स. २ २ सत्वं तु ॥ सातोदय सत्त्वमसातोदयसत्त्वमिति चत्वारः ॥६३३ - ६३४ ॥ अथ गोत्रस्याह गोत्रद्वयबन्धसम्भवस्थाने उच्चनीचे कतरमेव बन्धोदयौ स्तः । सत्त्वमयोगिद्विचरमसमय पर्यन्तमुभयं स्यात् । चरमसमये सत्त्वमुच्चमेव ॥ ६३५ ॥ 00 अतः साताका उदय दोनोंका सत्व या असाताका उदय दोनोंका सत्त्व अथवा साताका १५ उदय साताका सत्त्व या असाताका उदय, साताका सत्त्व इस प्रकार चार भंग हैं ।। ६३३-६३४॥ छठे गुणस्थान पर्यन्त भंग ४ सयोगी पर्यन्त भंग २ अयोगीमें भंग ४ सा सा ० सा अ. २ २ नी. नी. उ. नी. उ. उ. २ २ २ उ उ उ उ. नी नी नी 14510 ० नी. उ २ २ आगे गोत्रका कथन करते हैं जहाँ दोनों गोत्रोंके बन्धकी सम्भावना है वहाँ उच्च और नीच में से एकका ही बन्ध और उदय होता है । सत्त्व अयोगी के द्विचरम पर्यन्त दोनोंका है। अन्त समयमें उच्चका ही सत्व है ।। ६३५|| ० उ उ ० For Private & Personal Use Only ९७९ सा २ ० अ. २ ० सा अ. सा अ. २० www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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