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________________ ९२८ गो० कर्मकाण्डे कार्मणकायावसरं समुद्घातकेवलियोळुटप्पुदरिदं तत्कालावसरग्रहणनिमित्तमागि विग्रहकार्मणशरीरग्रहणमक्कु दरियल्पडुगुमल्लि विग्रहगत्यादिगळ कालप्रमाणमं क्रमदिदं पेन्दपरु : एक्कं व दो व तिण्णि व समया अंतोमुहुत्त यं तिसुवि । हेट्ठिमकालूणाओ चरिमस्स य उदयकालो दु ॥५८४।। एको वा द्वौ वा त्रयो वा समया अंतर्मुहुर्तस्त्रिष्वपि । अधस्तनकालोनायुश्चरमस्य चोदयकालस्तु॥ ___विग्रहगतिय कार्मणशरीरदोळ उदयकालमेकद्वित्रिसमयंगळप्पुवु । १। २।३। शरीर मिश्रदोळुदयकालमंतर्मुहर्तप्रमितमक्कुमंते शरीरपर्याप्तियोळं उच्छ्वासनिश्वासपर्याप्तियोळमक्कुं । २१ । भाषापर्याप्तियोळमा नाल्कुं कालंगळ युतियुमंतर्मुहूत्तंप्रमितमक्कु प ३२ मरिंद २१३ १० मूनमप्प भुज्यमानायुष्पमाणमेनितनितुमुदयकालप्रमाणमक्कुं। विग्रहगतिशरीरमिश्रशरीरपर्याप्ति उच्छ्वासनिश्वासपर्याप्ति भाषापय्यर्यामिगळोळु नियतोदयनामस्थानंगळोळवप्पुदरिनी कालप्रमाणं पेळल्पटुदु। ई पंचकालंगळं जीवसमासेयोळु योजिसिदपरु : आनपानपर्याप्तौ भाषापर्याप्तौ च क्रमेण पंच भवन्ति । अत्र विग्रहगतावित्येतावत एव ग्रहणं समुद्धातकेवलिनः १५ कार्मणकायस्य ग्रहणार्थं ॥५८३॥ तेषां कालानां प्रमाणं क्रमेण विग्रहगतेः कार्मणशरीरे एको वा द्वौ वा त्रयो वा समयाः, शरीरमिश्रे शरीरपर्याप्ती उच्छ्वासनिश्वासपर्याप्तौ च प्रत्येकमन्तर्महतः, भाषापर्याप्ती उक्तचतुःकालोनं सर्व भुज्यमानायुः प ३॥५८४॥ तान् पंचकालान् जीवसमासेषु योजयति स ३ २१३ कार्मण शरीरकाल है। जबतक शरीर पर्याप्ति पूर्ण न हो तबतक मिश्रशरीर काल है। शरीर २० पर्याप्ति पूर्ण होनेपर जबतक श्वासोच्छवास पर्याप्ति पूर्ण न हो तबतक शरीर पर्याप्तिकाल है। श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति पूर्ण होनेपर जबतक भाषा पर्याप्ति पूर्ण न हो तबतक श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिकाल है। भाषा पर्याप्ति पूर्ण होनेपर सब आयु प्रमाण काल भाषापर्याप्तिकाल है। यहाँ विग्रहगति और कार्माण दोका ग्रहण समुद्घात केवलीके कार्माणको ग्रहण करनेके लिए किया है ॥५८३।। २५ उन पाँच कालोंका प्रमाण क्रमसे विग्रहगतिके कार्मणशरीरमें एक समय, दो समय या तीन समय है । मिश्र शरीर, शरीर पर्याप्ति, और उच्छ्वास-निश्वास पर्याप्तिमें प्रत्येकका अन्तर्मुहूत काल है । भाषापर्याप्तिमें उक्त चार कालोंका प्रमाण घटानेपर शेष सम्पूर्ण भुज्यमान आयु प्रमाण काल जानना ।।५८४।। उन पाँच कालोंको जीव समासोंमें लगाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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