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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका मारादि दशकल्पज मिथ्यादृष्टिदेवासंयमिगळ नवविंशतियं मनुष्यतिर्यग्गतियुतमागियुं त्रिशत्प्रकृतिस्थानमं तिर्यग्गत्युद्योतयुतमागि कटुवरु । आनतादिकल्पज मिथ्यादृष्टिगळं नवग्रैवेयक मिथ्यादृष्टिगळ मनुष्यगतियुत नवविंशतिस्थानमनों दने कटुवरु। निर्वृत्यपर्याप्तमिथ्यादृष्टिदेवर्कळगे पेळल्पडुगुमे ते दोड-मनुष्यलोकप्रतिबद्धजघन्यमध्यमोत्कृष्ट त्रिंशद्भोगभूमिसमुद्भूत. तिर्यग्मनुष्यमिथ्यादृष्टिगळ मानुषोत्तराचलापरभागार्द्धपुष्करद्वीपमादियागि स्वयंप्रभाचलाा - ५ चीनभागस्वयंभूरमणद्वीपार्द्धपय्यंतमाव जघन्यतिर्यग्भोगभूमिसंज्ञिपंचेंद्रिय तिर्यग्मिथ्यादृष्टिजोवंगळु षण्णवतिकुमानुष्यद्वीपंगळ कुमानुष्यरुगळ नियमदिदं देवायुष्यमं स्वस्थितिनवमासावशेषमादागळष्टापकषंगळोळे येल्लियानुमो दुत्रि भागावशेषमादागळ कट्टि भुज्यमानायुःस्थितिक्षयवशदिदं भवनत्रयदेवर्कळोळ कल्पस्त्रीयरोळ मिथ्यादृष्टिगळागि पुट्टि यावच्छरीरमपूर्ण तावत्कालं निर्वृत्यपर्याप्त मिथ्यादृष्टिदेवासंयमिगळप्परु । इल्लिगे प्रस्तुतगाथासूत्रमिदु:- १० ___ सम्वट्ठोत्ति सुविट्ठी महव्वई भोगभूमिजा सम्मा। सोहम्मदुर्ग मिच्छा भवतियं तावसा य वरं ॥-त्रि० सा० ५४६ गा० । एंदितु भोगभूमिजमिथ्यादृष्टिगतापसरुगळे वरमुत्कृष्टदिदं भवनत्रयदोळ, पुटुबरप्पुदरिदं शेषत्रिगतिजरागरें बुदत्थं । मत्तं मनुष्यक्षेत्रप्रतिबद्धकर्मभूमिभरतैरावतविदेहंगळ संजितिर्यग्गतियुतनवविंशतिकतिर्यग्गत्युद्योतयुतत्रिंशत्के । नतादिकल्पनववेयकजः मनुष्यगतियुतनवविंशतिकमेव। १५ मनुष्यलोकप्रतिबद्धत्रिंशद्भोगभूमितिर्यग्मनुष्यः मानुषोत्तरात्स्वयंप्रभाचलांतरालवर्तिजघन्यतिर्यग्भोगभूमिसंज्ञितिर्यअण्णवतिकुमानुष्यद्वीपकुमानुष्यश्च नियमेन देवायुष्यं स्वस्थितिनवमासावशेषेऽष्टापकर्षेषु क्वचिरित्रभागावशेषे बद्ध्वा भुज्यमानायुःस्थितिक्षयवशेन भवनत्रये कल्पस्त्रीषु वा मिथ्यादृष्टिभूत्वोत्पद्य यावच्छरीरमपूर्ण तावत् निर्वृत्त्यपर्याप्तो भवति । अत्र प्रस्तुतगाथा ___ सव्वट्ठोत्ति सुदिट्ठी महन्वई भोगभूमिजा सम्मा । सोहम्मदुर्ग मिच्छा भवणतियं तावसा य वरं ॥१॥ २० को बाँधते हैं। और सानत्कुमार आदि दस स्वर्गोंके देव मनुष्य या तिथंचगति सहित उनतीसका या तियंचगति उद्योत सहित तीसका बन्ध करते हैं। आनतादि स्वर्ग और नौ प्रैवेयकोंके देव मनुष्यगति सहित उनतीसके स्थानको बाँधते हैं। ___आगे देवोंके निवृत्यपर्याप्त अवस्थामें बन्ध कहते हैं। अतः देवोंमें कौन कैसे उत्पन्न होता है यह कहते हैं मनुष्यलोक सम्बन्धी तीस भोगभूमियोंके तिर्यंच और मनुष्य तथा मानुषोत्तर और स्वयंप्रभ पर्वतके मध्यवर्ती असंख्यात द्वीप समुद्र सम्बन्धी जघन्य तियंच. भोगभूमिके संज्ञी तिथंच तथा लवण और कालोद समुद्रोंके छियानबे द्वीपवासी कुमनुष्य नियमसे अपनी आयुके नौ महीने शेष रहनेपर आठ अपकर्षों में से किसी एकमें त्रिभाग शेष रहनेपर देवायुको बाँधकर भुज्यमान आयकी स्थितिका क्षय होनेसे भवनत्रिकमें अथवा कल्पवासी स्त्रियों में ३० मिथ्यादृष्टि होकर उत्पन्न होते हैं और जबतक शरीर पर्याप्तिपूर्ण नहीं होती तबतक निवृत्यपर्याप्त रहते हैं । इस विषयमें प्रासंगिक गाथा कहते हैं महावती सम्यग्दृष्टी सर्वार्थसिद्धि तक उत्पन्न होते हैं। भोगभूमिया सम्यग्दृष्टी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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