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गो० कर्मकाण्डे
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पंचकभुं नीलरुग्मि कुलपर्व्वतांतरित रम्यकक्षेत्र पंचकमुमंतु पत्तुं मध्यमभोगभूमितलंगळोळं हिमवन्महाहिमवंत कुलपर्वतद्वयांतरित पंचहैमवत क्षेत्रंगळं रुक्मिशिखरि कुलपतघांतरित पंच हैरण्यवत क्षेत्रगळु मंतु पत्तुं जघन्य भोगभूतलंगळोळं बण्नवतिकुमानुष्य भोग भूतलंगळोळमा मनुष्यरुं तिध्यंचरागि पुट्टरु । मानुषोत्तरस्व यंत्र माचलद्वितयांतरितजघन्य तिय्यंग्भोगभूप्रतिबद्धं५ गळप्प जंबूद्वीप धातकीबंड पुष्कर स्वयंभूरमणमें ब नाकुं द्वीपशलाकापरिहो नंगळप्पे रडुवर युद्धार सागरोपमाद्धं प्रमित द्वीपंगळोळं पुष्करद्वीपोत्तरार्द्धदोळं स्वयंप्रभाचलार्वाचीनार्द्धबोळ स्थलचरखचरतिय्यंच रुगळुमागियं पुट्टरु । लवणोदकालोदस्वयंभूरमण में ब मूरुं समुद्रशलाका परिहीनंगळपेर डुवर युद्धारसागरोपमा प्रमितसमुद्रंगळु तिर्य्यग् नोगावनिप्रतिबद्धंगळादोडमा समुद्रंगळोळ जल मिक्षुरसस्वादुवुं जलचरंगळु मिल्ल । सर्व्वं भागभूतलंगळोळु जलमिक्षुरसस्वादुवु विकलॅब्रियजीवं१० गऴुत्पत्तियुमिल्ल | चरमचवसृणां अंजनेयुमरिष्टयं मघवियं माघवियु में व नाल्कुं पृथ्विगळ नारकरगळोळगे सप्तमपृथ्वियनारकरुगळं बिट्टु मूरुं पृथ्विगळ नारकरगळ स्वस्थायुः क्षितिक्षयवर्गाविवं मरणमादोडे जननमावेर्डयोळावावगतिगळोळक्कुर्म दोडे तोयोंने मुंपेळव पंचदश कम्र्म्मभूमिगळोळ तीर्थंकरल्लद यथायोग्य मागि क्वचिच्चरमांगरुं' साधारण मनुष्यरुगळ मागियुं गर्भजपर्याप्त पंचेंद्रिय संज्ञितिय्यंग्जीवंग मागियुं जनियिसुवरु । मुंपेन्द तिथ्यंककर्मभूमियोळ स्थलचरजलचर खचर १५ गब्भंज पर्याप्तपंचेंद्रिय संज्ञितिय्यंग्जीवंगळ मागियुं लवणकालोदक समुद्रंगळ जलचरगर्भजपर्य्याप्तपंचेंद्रियसंज्ञितिय्यंचरागियुं जनियि सुबरु । सप्तम्याः तिरश्चि चैव माघविय नारकरगळ स्वस्वायु
कुतः ? अर्ध सकल चक्रिबलभद्रवजित पंच दशक मं भूमितिर्यग्मनुष्येषु लवणोदकालो दस्वयंप्रभा चलापरभागस्वयंभूरमणद्वीपपरार्ध वत्समुद्रतद्द्बहिश्चतुष्कोण जलस्थलखेचरेषु च तादृक् चैवोत्पत्तेः । त्रिंशत्षण्णवति भोगकुभोगभूमितिर्यग्मनुष्य मानुषोत्तर स्वयंप्रभाचलांतरालस्थलजघन्यतिर्यग्भोगभूमिजेषु चानुत्पत्तेः । अंजनजानां गमनं धर्मा
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हैं। क्योंकि उनकी उत्पत्ति अर्धचक्री, सकलचक्री और बलभद्र अवस्थाको छोड़कर पन्द्रह कर्मभूमिके तिर्यंच - मनुष्योंमें, लवणसमुद्र, कालोद समुद्र, स्वयंप्रभाचलके परे स्वयंभूरमणद्वीप के आधे भाग में, स्वयंभूरमण समुद्र में और उसके बाहर के चारों कोनों में जलचर, थलचर और नभचरोंमें होती है ।
विशेषार्थ - त्रस नाली चौकोर है और स्वयंभूरमण समुद्र गोल है । इससे उन चारों २५ कोनों में भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच हैं उनमें उत्पत्ति बतलायी है ।
तीस भोगभूमियों और छियानबे कुभोगभूमियोंके तिर्यंच मनुष्योंमें, मानुषोत्तर और स्वयंप्रभाचलके मध्य में असंख्यात द्वीप और समुद्रों में जघन्य भोगभूमि हैं वहाँके तिथंचोंमें वे
१. तिर्यक् भोगभूमिस्थसमुद्रेषु जलचरजीवाभावात् ।
२. स्वयंप्रभाचलंद वोळ भागर्म बुदत्थं । बोळ भागमनेके पेळदर दोर्ड अपर भागं कम्र्मभूमिप्पुदरिदं वोळभागं भोगभूमियप्पुदरिनिल्लिगे प्रकृतं भोगभूमिपेयप्पुदरिदं स्वीकरिसल्पदु ॥
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३. णिरयचरो णत्थि हरीबळचक्की तुरियपहुडि णिस्सरिदो । तित्यचरमग्गसंजुद मिस्सतियं ( मिश्रा संयतदेशसंयत ) णत्थि नियमेण ॥
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