________________
१०
१५
२५
गो० कर्मकाण्डे
विदिये तुरिये पणगे छडे पंचैव सेसगे एक्कं । विदिचउपण छस्सत्तयठाणे चत्तारि अट्ठगे दोणि ॥ ३७१ ॥ |
द्वितीये तुरीये पंचमे षष्ठे पंचैव शेष के एकः । द्वितीयचतुर्थ पंचमषष्ठसप्तमस्थाने चत्वारोऽ
ष्टमे द्वौ ॥
३०
६१६
द्वितीयचतुर्थपंचमषष्ठबद्धायुरचतुः सत्वस्थानंगळोळ प्रत्येकं पंच पंच भंगंगळवु । शेषप्रथमतृतीय सप्तमाष्टमनवमदशमस्थानषट्कवोळु प्रत्येकमेकैकभंगं मक्कुमबद्धायुः सत्वस्थानंगळे टरोळ द्वितीयचतुर्थ पंचमषष्ठसप्तमस्थानं गळय्दरोळ प्रत्येकं नाकु नाल्कु भंगंगळप्पुवष्टमसत्वस्थानदोळ एरडु भंगंगळवु । शेषप्रथमतृतीयस्थानद्वयदोळु प्रत्येकमेकैकभंगमव कुमंतु कूडि सत्वस्थानंगल मिथ्यादृष्टियोळ, पदिने टप्पुवरोळ भंगंगळु पंचाशत्प्रमितंगळप्पु 1
अनंतरं सासादन गुणस्थानदोळं मिश्रगुणस्थानवोळ बद्धाबद्धायुष्यरुगळं विवक्षिसिकोंडु सत्वस्थानंगळमनवर भंगंगळ संख्येयुमं गाथाचतुष्टर्याददं वेदपरु :
द्वितीये चतुर्थे पंचमे षष्ठे बद्धायुष्कसत्त्वस्थाने पंच पंच भंगा भवंति । शेषप्रथमतृतीय सप्तमाष्टमनवमदशमेकैक एव । अवद्वायुः स्थानेषु च द्वितीये चतुर्थे पंचमे षष्ठे सप्तमे चत्वारश्चत्वारः, अष्टमे द्वौ, शेषप्रयम२० तृतीययोरेकैकः एवं मिथ्यादृष्टौ सत्त्वस्थानान्यष्टादश । भंगा: पंचाशत् ।। ३७१ ॥ अथ सासादन मिश्रयोः स्थानभंगसंख्यां गाथाचतुष्केणाह
सासादने सप्तभिर्हीनं त्रिभिर्होनं च सर्वसत्त्वं बद्धायुष्कस्य । मिश्र त्रिभिः सप्तभिः सप्तभिरेकादश
सत्ततिगं सासाणे मिस्से तिग सत्त सत्त एयारा ।
परिहीण सव्वसत्तं बद्धस्सियरस्स एगूणं ॥ ३७२ ॥
सप्तकमासासादने मिश्र त्रिकसप्तसप्तैकादश । परिहीण सधंसत्वं बद्धस्येतस्यैरकोनं ॥
सासादनसम्यग्दृष्टियो सप्तप्रकृतिसत्वमुं त्रिप्रकृतिसत्वमुं परिहीनस प्रकृतिसत्वस्थान द्वयमक्कु । मिश्रनोळु त्रि सप्त सप्त एकादश प्रकृति सत्वर हित सर्व्वं प्रकृतिसत्वस्थानचतुष्टयमिवु बद्धायुष्यरोळryवु । इतरस्य अबद्धायुष्यंगे अवरोळु प्रत्येकमेकैकप्रकृतिसत्य हीनमक्कुमा सासादन
पूर्व में कहे अठारह स्थानोंके पुनरुक्त और समान भंगोंके बिना जो भंग कहे हैं उनकी संख्या कहते हैं—
दूसरे, चौथे, पाँचवें, छठे बद्धायुष्क स्थान में पाँच-पाँच भंग होते हैं शेष पहले, तीसरे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें बद्धायुस्थान में एक-एक भंग होता है। अबद्धायुस्थान में दूसरे, चौथे, पाँचवें, छठे सातवेंमें चार-चार, आठवें में दो, शेष पहले और तीसरे में एक-एक भंग होता है । इस प्रकार मिध्यादृष्टि गुणस्थान में स्थान अठारह और भंग पचास होते हैं ||३७१ ||
आगे सासादन और मिश्र गुणस्थान में स्थानों और भंगोंकी संख्या चार गाथाओं द्वारा कहते हैं
सासादनमें बद्धायुष्क के सर्व सत्व में से सात हीन और तीन हीन दो स्थान होते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org