SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 667
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सम्यग्दृष्टि सम्यग्मिध्यादृष्टिगळ सत्वस्थानभंगंगळगे संदृष्टि :बध्य. ० । सासादनगे। मिश्रगे । . . । ० । ० । ० बध्य. १४१ । १४५ । १४५ १४१ । १४१ । १३७ अबध्य. १४०। १४४ १४४ १४० । १४० । १३६ सासादनंगे सत्वरहितप्रकृतिगळं पेन्दपरु : तित्थाहारचउक्कं अण्णदराउगदुगं च सत्तेदे । हारचउक्कं वज्जिय तिण्णि य केई समुट्ठि॥३७३॥ तीर्थाहार चतुष्कमन्यतरायद्विकं च सप्तैतानि । आहारकचतुष्कं विवर्य त्रीणि च कैश्चित- ५ समुद्दिष्टं ॥ तीर्थमुमाहारकचतुष्टयमुं विवक्षितभुज्यमानबध्यमानायुद्वंयमल्लदितरायुद्धयमुमंतु एळं प्रकृतिगळ सासादननोळसत्वरहितप्रकृतिगठप्पुवु । अवरोळाहारकचतुष्टयमुं वजिसि तीर्थमुमितरादितयमुं मूरे प्रकृतिगळ सत्वरहितंगठाहारकचतुष्टयमुं सत्वप्रकृतिगळप्पु दु केलंबराचार्यरुगळिदं पेळल्पटुदु ॥ मिश्रनोळु सत्वरहितप्रकृतिगळं पेळ्दपरु : 'तित्थण्णदराउदुगं तिण्णिवि अणसहिय तह य सत्तं च । हारचउक्के सहिया ते चेव य होंति एयारा ॥३७४॥ तीर्थान्यतरादिकं त्रीण्यप्यनंतानुबंधिसहितं । तथा च सप्त च आहारक चतुष्केग सहि. तानि तानि चैव भवंत्येकादश ॥ भिश्च हीनं भवति । अबद्धायुष्कस्य पुनरेकैकहीनं भवति ॥ ३७२ ॥ सासादनस्य होनप्रकृतीराह तीर्थमाहार चतुष्टयं विवक्षितभुज्यमानबध्यमानाम्यामितरायुषी चेति सप्त। तत्राहारकचतुष्के वजिते तिस्रः तच्चतुष्कसत्त्वं तु कैश्चिदेवोद्दिष्टं ॥ ३७३ ॥ मिश्रस्य ता आहमिश्रमें तीन, सात, सात और ग्यारहसे हीन चार स्थान होते हैं। अबद्धायुके स्थान बद्धायुके स्थानमें से एक-एक बध्यमान आयुसे हीन होते हैं ॥३७२।। सासादनमें घटायी गयी प्रकृतियोंको कहते हैं सासादनमें तीर्थकर, आहारक चतुष्क, भुज्यमान और बध्यमानके बिना शेष दो आयु इन सात के बिना एक सौ इकतालीस प्रकृतिरूप प्रथम स्थान होता है। उन सात आहारक चतुष्कको छोड़ देनेपर तीन प्रकृतिहीन दूसरा स्थान एक सौ पैतालीस रूप होता है। इस एक सौ पैंतालीसमें जो आहारक चतुष्कका सत्त्व कहा है वह कुछ आचार्योंके २५ मतानुसार कहा है। अन्यथा पूर्व में सासादन गुणस्थानमें आहारकका सत्त्व नहीं कहा है ॥३७३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy