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________________ ६१० गो० कर्मकाण्डे प्रकृतिरहितमाद नूरमूवत्तो भत्तु प्रकृतिसत्वस्थानवोल चतुर्गतिजरभेवदि नाल्कु भैगंगळप्पुषु । संदृष्टिः बध्यमान । १४० । अबध्यमान । १३९ । षष्ठबध्यमानस्थानदोळु विवक्षितभुज्यमानबध्यमानायुयमल्लवितरायुर्वितयमुमाहारकचतुष्टयमुं तोत्थंमुं सम्यक्त्वप्रकृतिय मिश्रप्रकृतियु मितों भत्तं प्रकृतिसत्वरहितमागि नूर मूवत्तों. ५ भतु प्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमल्लि पुनरुक्तसमविहीनचतुर्गतिसंबंधि भंगंगळय्नु ५ मप्पुवल्लि अबद्धायुष्यनं कुरुत्तु चतुर्गतिय विवक्षितभुज्यमानायुष्यमल्लवितरायुस्त्रयमुमाहारकचतुष्टयमुं तीर्थमुं सम्यक्त्वप्रकृतियु मिश्रप्रकृतियं मितु वशप्रकृतिरहितमागि नूर मूवत्तेदु प्रकृतिसत्वस्थानबोलु चतुर्गतिजर भेददिदं नाल्कुभंगंगळप्पुवु । संदृष्टिः बध्यमान अबध्यमान । १३८ चातुर्गतिकभेदाळ्गाश्चत्वारः । संदृष्टि ४० अ १० षष्ठं बध्यमानायुःस्थानं विवक्षितभुज्यमानबध्यमानायुयामितरायुटिकाहारकचतुष्कतीर्थसम्यक्त्वमियाभावादेकान्नचत्वारिंशच्छतकं । तत्र प्राग्वद्धंगाः पंच । तदबद्धायुःस्थानमष्टत्रिशच्छतकं । तत्र चातुर्गतिकभेदाभंगाश्चत्वारः । संदृष्टिः ब १३९ अ ११३८ पूर्वोक्त एक सौ चालीसमें से बध्यमान आयुके बिना एक सौ उनतालीस प्रकृतिरूप होता है। उसमें चार आयुकी अपेक्षा चार भंग होते हैं। छठा बद्धायुस्थान विवक्षित भुज्यमान बध्यमान आयुके बिना शेष दो आय आहारकचतुष्क, तीर्थकर, सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीयका अभाव होनेसे एक सौ उनतालीस प्रकृतिरूप है। उसके भंग पूर्ववत् पाँच हैं। छठा अबद्धायु स्थान पूर्वोक्त एक सौ उनतालीसमेंसे बध्यमान आयु बिना एक सौ अड़तीस प्रकृतिरूप है। भंग चार आयुकी अपेक्षा चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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