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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका बध्यमान | १४२ १ अबध्यमान १४१ १ चतुर्थबध्यमानायुष्यस्थानदोळ विवक्षितभुज्यमानबध्यमानायुर्द्धय मल्लदन्यतरायुद्ध यमुमाहारकचतुष्टयमुं तोत्थंकरमुं रहितनागि नूर नात्वत्तोदु प्रकृतिसत्वस्थानदोळु सुपेव्व द्वादश भंगंगळोळ पुनरुक्तसमभंगविहीन पंचभंगंगळप्पु ५ वल्लियुमबद्धायुष्यनं कुरुत्तु गतिचतुष्टयंगळो. छितरायुस्त्रयमुमाहारकचतुष्टयमुं तीर्त्यमुरहितमागि नूरनात्वत्तु प्रकृतिसत्वस्थानदोळ चतुग्र्गतिजर भेदिदं नाकुं भंगंगळप्पु । संदृष्टि: बध्यमान | १४१ ५ Jain Education International अबध्यमान ब पंचमबध्यमानायुस्थानदोल विवक्षित बध्यमानायुर्द्वयमल्लदितरायुर्द्वयमं आहारकचतुष्टयमुं तीर्त्यमुं सम्यक्त्व प्रकृतियुमितेंदु प्रकृतिगळु रहितमाद नूरनात्वत्तु प्रकृतिसत्वस्थानदोमुं पेद द्वादशभंगंगळोळु पुनरुक्तसमविहीन पंचभंगंगळप्पु ५ वल्लि अबद्धायुष्यनं कुरुतु गतिचतुष्टयंगळोळित रात्रयमुमाहारचतुष्टयमुं तीर्त्यमुं सम्यक्त्वप्रकृतियुमितो भ अ १४० ४ भुज्यमान अ | १४२ १ ११४१ | १ चतुर्थं बध्यमानाः स्थानं विवक्षितभुज्यमान वध्यमानायुयमित रायुर्द्वयाहारचतुष्कतीर्थाभावादेकचत्वा- १० रिशच्छतकं । तत्र प्रागुक्तद्वादशभंगेषु पुनरुक्तसमभंगान्विहाय पंच भंगा भवंति । तदबद्धायुः स्थानं इतरायुस्त्रयाहारकचतुष्कतीर्थाभावाच्चत्वारिंशच्छतकं । तत्र चातुर्गतिकभेदाद् भंगाश्चत्वारः । संदृष्टि : :-- ब १४१ ६०९ | १४० ४ पंचमं बध्यमानायुः स्थानं विवक्षितभुज्यमानबध्यमानायुयमितरायुर्द्वयाहारक चतुष्कतीर्थं सम्यक्त्वप्रकृ त्यभावाच्चत्वारिंशच्छतकं । तत्र प्राग्वगाः पंच | तदबद्धायुः स्थानं एकान्नचत्वारिंशच्छतकं । तत्र वहाँ पूर्वोक्त बारह भंगों में से पुनरुक्त सात भंगोंको छोड़ पाँच भंग होते हैं। चौथा अबद्धायुस्थान भुज्यमान बिना तीन आयु आहारक चतुष्क तीर्थंकर के बिना एक सौ चालीस प्रकृतिरूप होता है । उसमें मुज्यमान चार आयुकी अपेक्षा चार भंग होते हैं । पाँचवाँ बद्धास्थान विवक्षित भुज्यमान बध्यमान आयुके सिवाय शेष दो आयु आहारक चतुष्क, तीर्थंकर और सम्यक्त्व मोहनीयका अभाव होनेसे एक सौ चालीस प्रकृतिरूप है । उसमें पूर्वोक्त बारह भंगोंमें से पाँच भंग होते हैं । पाँचवाँ अबद्धायस्थान .क-७७ For Private & Personal Use Only १५ २० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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