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कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका
५९५ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वर चारुचरणारविवद्वंदवंदनानंदित पुण्यपुंजायमान श्रीमद्राय राजगुरु मंडलाचाय॑महावादवादीश्वररायवादीपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवत्ति श्रीमद्धर्मभूषण भट्टारकदेवप्रिय सधर्मर्नु श्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रवत्तिश्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसारकर्णाटवृत्तिजीवतत्वप्रदीपिकयोळु कर्मकांडबंधोदयसत्वयुक्तस्तवं महाधिकारं प्ररूपितमादुदु ॥
इत्याचार्यनेमिचद्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपंचसंग्रहवृत्ती जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां
कर्मकांडे बंधोदयसत्त्वप्ररूपणो नाम द्वितीयोऽधिकारः ॥२॥
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इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् भहन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयसूरि सिद्धान्तचक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णी- के द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें कर्मकाण्डके अन्तर्गत
बन्धोदय सस्वनिरूपण नामक दूसरा अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥२॥
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