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अथ सत्त्वस्थानमंगाधिकारः ॥३॥
णमिऊण वड्डमाणं कणयणिहं देवरायपरिपुज्जं ।
पयडीण सत्तठाणं ओघे भंगे समं वोच्छं ॥३५८॥ नत्वा वर्द्धमानं कनकनिभं देवराजपरिपूज्यं । प्रकृतीनां सत्वस्थानं ओघे भंगे समं वक्ष्यामि ॥
कनकवर्णनुं देवराजपरिपूज्यनुमप्प श्रीवीरवर्द्धमानस्वामियं नमस्कारमं माडि प्रकृतिगळ ५ सत्वस्थानमं गुणस्थानंगळ भंगसहितमागि पेन्दपनु ।
कि स्थान को वा भंगः एंदित दोड संख्याभेदेनैकस्मिन्जीवे युगपत्संभवत्प्रकृतिसमूहः स्थानं । अभिन्न संख्यानां प्रकृतीनां परिवर्तन भंगः । संख्याभेदेनैकत्वे प्रकृतिभेदेन वा भंगः एंदितु स्थानलक्षणमुं भंगलक्षणमुमरियल्पडुगुं । गुणस्थानोळ स्थानभंगंगळं पेळ्व प्रकारमं पेळ्दपरु:
कनकवणं देवराजपरिपूज्यं श्रीवोरवर्धमानस्वामिनं नत्वा प्रकृतीनां सत्त्वस्थानं गुणस्थानेषु भंगसहितं वक्ष्यामि । कि स्थानं? को वा भंगः ? संख्वाभेदेनैकस्मिन जीवे युगपत्संभवत्प्रकृतिसमूहः स्थानं । अभिन्नसंख्यानां प्रकृतीनां परिवर्तन भंगः, संख्याभेदेनैकत्वे प्रकृतिभेदेन वा भंगः ॥३५८॥ गुणस्थानेषु स्थानभंगप्रतिपादनप्रकारमाह
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स्वर्णके समान रूपरंगवाले और देवोंके राजा इन्द्र के द्वारा पूजनीय श्री वर्धमान स्वामीको नमस्कार करके प्रकृतियोंके सत्त्वस्थानको गुणस्थानों में भंगके साथ कहूँगा। स्थान १५ किसे कहते हैं और भंगका क्या स्वरूप है यह कहते हैं
एक समय में एक जीवके संख्या भेदको लिये हुए जो प्रकृतियोंका समूह पाया जाता है उसे स्थान कहते हैं। और समान संख्यावाली प्रकृतियों में जो प्रकृतियोंका परिवर्तन होता है उसे भंग कहते हैं । अथवा संख्या भेदसे समानता रहते हुए भी प्रकृति भेद होनेसे भंग होता है ।।३५८॥
विशेषार्थ-एक जीवके एक कालमें जितनी प्रकृतियोंकी सत्ता पायी जाती है उनके समूहका नाम स्थान है। सो जहाँ अन्य-अन्य संख्याको लिये प्रकृतियोंकी सत्ता पायी जाती है वहाँ अन्य-अन्य स्थान कहा जाता है। जैसे किन्हों जीवोंके एक सौ छियालीसकी सत्ता पायी जाती है और किन्हीं जीवोंके एक सौ पैतालीसकी सत्ता पायी जाती है तो यहाँ दो
स्थान हुए । इसी प्रकार सर्वत्र जानना। और जहाँ एक ही स्थानमें प्रकृतियाँ बदल जाती हों २५ तो उसे भंग कहते हैं। जैसे किन्हीं जीवोंके मनुष्यायु और देवायुके साथ एक सौ पैंतालीस
प्रकृतियोंकी सत्ता पायी जाती है किन्हीं जीवोंके तियचाय नरकायुके साथ एक सौ पैंतालीस प्रकृतियोंकी सत्ता पायी जाती है। सो यहाँ स्थान तो एक ही हुआ क्योंकि संख्या समान है। १. सत्त्वस्थाननिरूपणा-संख्याप्रकृतिभ्यां भेदे स्थानं । २. संख्यकत्वे प्रकृतिभेदे भंगः।
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