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________________ ५९४ गो० कर्मकाण्डे कम्मेवि सगुणोधर्म दितु कार्मणकाययोगदोळ पेळ्वंतनाहारमार्णयोळ सत्वप्रकृतिगळप्पुवु । संदृष्टि : | व्यु मिसा | अस७२ अ १३ स १४८ १४४ १४८ ८५ ८५ | १३ | अ । ० ४० ६३ | ६३ । १३५/ यितुक्तप्रकारविंदं मार्गणास्थानदोळ प्रकृतिगळ सत्वमिदु प्रत्यक्षवंदकरप्प बलदेववासुदेवरुळिदच्चिसल्पट्ट नेमिचंद्रतीर्थकर परमभट्टारकरिद पेळल्पदुदु । मेणाबलदेवणनिदं श्रीमाधव५ चन्द्र विद्य देवरुळंदमुं पूजिसल्पट्ट नेमिचंद्रसिद्धांतचक्रत्तिळिदं पेळल्पटुतु ॥ सो मे तिहुवणमहिओ सिद्धो बुद्धो णिरंजणो णिच्चो। दिसदु वरणाणलाई बुहजणपरिपत्थणं परमसुद्धं ॥३५७॥ स मे त्रिभुवनमहितः सिद्धो बुद्धो निरंजनो नित्यः। दिशतु वरज्ञानलाभं बुधजनपरिप्रात्थितं परमशुद्धं ॥ अनाहारयोग्य १४८ & feroferoferc, calculez एवं मार्गणास्थाने प्रकृतिसत्त्वमिदं प्रत्यक्षवंदारुम्यां बलदेववासुदेवाभ्यामचितनेमिचंद्रतीर्थकरेण अथवा बलदेवभ्रात्रा श्रीमाधवचंद्रत्रविद्यदेवेनाचितनेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्तिना निरूपितं ॥३५६॥ स मे त्रिभुवनमहितः सिद्धो बुद्धो निरंजनो नित्यः दिशतु वरज्ञानलाभं बुधजनपरिप्रार्थितं परमशुद्धं ॥३५७॥ अनाहार मार्गणामें कार्मणकाययोगकी तरह जानना । इस प्रकार मार्गणास्थानमें १५ यह प्रकृतियोंका सत्त्व प्रत्यक्ष वन्दना करनेवाले बलदेव और वासुदेवसे पूजित नेमिचन्द्र तीर्थकरने कहा है। अथवा बलदेव भ्राता और श्री माधवचन्द्र विद्यदेवसे अर्चित नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने कहा है ॥३५६।। वे श्री नेमिनाथ भगवान् जो तीनों लोकोंके द्वारा पूजित हैं, सिद्ध, बुद्ध, निरंजन और नित्य हैं मुझे वह परम शुद्ध उत्कृष्ट ज्ञान दें, जो ज्ञान ज्ञानीजनोंके द्वारा प्रार्थनीय है, ज्ञानी२० जन जिसे चाहते हैं ।।३५७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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