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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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षं स्त्री नो६ पुं क्रोर क्रो१ मा२ मा१ : या२ या
लो२ लो ११
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णिरयादिसु पयडिढिदि-अणुभागपदेस-भेदभिण्णस्स ।
सत्तस्स य सामित्तं णेदव्वमदो जहाजोग्गं ॥३४४॥ नरकादिषु प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेश भेवभिन्नस्य । सत्वस्य च स्वामित्वं नेतव्यमितो यथायोग्यं ॥
नरकगत्यादिमागंणास्थानंगळोळ प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदविवं चतुविधमप्प सत्वक्के ५ स्वामित्वमिल्लिदं मेले यथायोग्यमागि नेतव्यमकुं। अनंतरं परिभाषयं पेन्दपरु:
तिरिये ण तित्थसत्तं णिरयादिसु तिय चउक्क चउ तिण्णि ।
आऊणि होति सत्ता सेसं ओघादु जाणेज्जो ॥३४५॥ तिरश्चि न तोत्यसत्वं नरकादिषु प्रयचतुष्क चतुस्त्रीणि । आयूंषि भवंति सत्वानि शेषमो- १० घात् ज्ञातव्यं ॥
षं । स्त्री । नो ६ । पुं १ | क्रो २ | क्रो १ | मा २ | मा १ | या २ | या १ । लो२ | लो१
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इतः परं नरकगत्यादिमागंणासु प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदभिन्नस्य चतुर्विधसत्त्वस्य स्वामित्वं यथायोग्यं नेतव्यं ॥३४४॥ अथ परिभाषामाह
सिवाय अन्य कर्मोंका उपशम नहीं होता। इस प्रकार उपशम श्रेणिमें मोहको उपशमाता है उसकी सत्ताका नाश नहीं होता। अतः अपूर्वकरणसे पशान्त गुणस्थान पर्यन्त उपशम १५ श्रेणिवालेके नरकायु तिथंचायु बिना एक सौ छियालीसकी सत्ता रहती है। किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टी उपशम श्रेणिवालेके एक सौ अड़तीसकी सत्ता अपूर्वकरणसे उपशान्त कषाय पर्यन्त रहती है। तथा जिसके आयुबन्ध नहीं हुआ हो उस क्षायिक सम्यग्दृष्टीके असंयत आदि चार गुणस्थानोंमें भी एक सौ अड़तीस ही की सत्ता होती है ॥३४३॥
यहाँसे आगे नरक गति आदि मार्गणाओंमें प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश चार २० प्रकारके भेदसे भिन्न कमोंके सत्वको यथायोग्य घटाना चाहिए ॥३४४॥
__ आगे परिभाषा कहते हैं
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