SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६४ गो० कर्मकाण्डे क्षपणाविधानदोळु पेदंते उपशमनविधानदोळं सत्वमक्कु। विशेषमुंटवावुदेवोर्ड संज्वलनकषायपुंवेदोपशमनमध्यदोळ मध्यमंगळप्प अप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानक्रोधाविकषाययद्वयंगळुपशमिसल्पडुवुवु क्रमदिदमदेवोडे पुरुषवेदोपशमनानंतरं पुंवेदनवकबंध सहितमागि मध्यमक्रोधकषायद्वयमुपशमिसल्पडुगुं। तदनंतरं संज्वलनक्रोधमुपशमिसल्पगुमनंतरमा संज्वलन५ क्रोधनवकबंधसहितमागि मध्यममानकषायतिकमुपशमिसल्पड़गुं। तदनंतरमा संज्वलनमानमुपशमिसल्पडुगु। मनंतरमा मानसंज्वलन नवकबंधसहितमागि मध्यममायाकषायद्वयमुपशमिसल्पङगुं। तदनंतरं मायासंज्वलनकषायमुपमिसल्पडुगुं। मनंतरं मायासंज्वलन नवकबंषसहितमागि मध्यमलोभकषायद्वय मुपशमिसल्पड़गुं । तदनंतरं संज्वलनबादर लोभमुपशमिसल्पङगुमें बी विशेषमिनितपोसतु। मोहनीयकर्ममो दक्कल्लवुळिवेळं कमंगळपशमविधानमिल्लप्पुरिवं १० नपुंसकवेदादिगळगुपशमविधानमरियल्पडुगु । संदृष्टि : क्षपणावदुपशमविधानेऽपि सत्त्वं स्यात् । किंतु संज्वलनकषायवेदमध्ये मध्यमा अप्रत्याख्यानप्रत्यास्थानाः द्वौ द्वौ क्रोधादयः क्रमेणोपशांताः खलु । तद्यथा-वेदोपशमनानंतरं तन्नवकबंधेन समं मध्यमक्रोषदयमुपशमयति । तदनंतरं संज्वलनक्रोधमुपशमयति । तदनंतरं तन्नवकबंधेन समं मध्यममानद्वयमुपशमयति । तदनंतरं संज्वलनमानमुपशमयति । तदनंतरं तन्नवकबंधेन समं मध्यममायाद्वयमुपशमयति । तदनंतरं संज्वलनमायामुपशमयति । तदनंतरं तन्नवकबंधेन समं मध्यमलोभद्वयमुपशमयति । तदनंतरं संज्वलनबादरलोभमुपशमयति इति विशेषो मोहनीयस्यैव शेषकर्मणामुपशमनविधानाभावात् । नपुंसकवेदादीनामुपशमविषाने संदृष्टिः क्षपणाकी तरह ही उपशम विधानका भी क्रम है। किन्तु विशेष इतना है कि संज्वलन कषाय और पुरुषवेदके मध्य में मध्यके अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान दो-दो क्रोधादिका २० क्रमसे उपशम होता है । वही कहते हैं नपुंसक वेद, स्त्रीवेद, हास्यादि छह और पुरुषवेदका क्रमसे उपशम होता है। पीछे पुरुषवेदका उपशम करनेके अनन्तर जो नवीन बन्ध हुआ उस सहित अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान क्रोधके युगलका उपशम करता है। ___ तत्काल पुरुषवेदका जो नवीन बन्ध हुआ उसके निषेक पुरुषवेदका उपशमन करनेके २५ कालमें उपशम करने योग्य नहीं हुए थे। क्योंकि अचलावलीमें कर्मप्रकृतिको अन्यरूप परिण माना अशक्य होता है। इससे पुरुषवेदके निषेक मध्यम क्रोधयुगलका उपशम करनेके कालमें उपशम किये जाते हैं। इसी प्रकार संज्वलन क्रोधादिके भी नवकबन्धका स्वरूप जानना। अनन्तर संज्वलन क्रोधका उपशम करता है। उसके अनन्तर उस संज्वलन क्रोधके नीन बन्ध सहित अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान मान युगलका उपशम करता है। उसके अनन्तर ३० संज्वलन मानका उपशम करता है। उसके अनन्तर संज्वलन मानके नवीनबन्ध सहित मध्यम अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान मायायुगलका उपशम करता है। उसके अनन्तर संज्वलन मायाका उपशम करता है। उसके अनन्तर संज्वलन मायाके नवीनबन्ध सहित मध्यम अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान लोभको उपशमाता है। उसके अनन्तर बादर संज्वलन लोभको उपशमाता है। यह विशेष केवल मोहनीय कर्मका ही जानना, क्योंकि मोहनीयके For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy