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कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिका
मेर समयकाल स्थितियक्कुमेरडु निषेकंगळ मूरु समयकाल स्थिति गलप्पुवित्याविक्रममुंटप्रवमनुदयंगळगे परमुखोदयत्वविदं समसमयोवयनिषे कंगळों दोदु निषेकंगळु स्थितोत्क संक्रमविद संक्रमिसि पोपुर्व बिंतु स्वमुखोदय पर मुखोदयविशेषमरियल्पडुगुं । संदृष्टि :
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अनंतरमेकविंशति चारित्र मोहनीयोपशमविधानक्रममं पेव्वपरु :
खवणं वा उबसमणे णवरि य संजलण पुरिसमज्झम्मि | मझिम दो दो कोहादीया कमसोवसंता हु ||३४३ ॥
क्षपणे वोपशमने नवीनं संज्वलनपुरुषमव्ये, मध्यम द्वौ द्वौ क्रोधावि कषायौ क्रमश उपशांती खलु ॥
एकनिषेको द्विसमयस्थितिकः द्वौ निषेकी त्रिसमयस्थितिकाविति क्रमस्य सद्भावात् । अनुदयगतानां परमुखोदयत्वेन समयसमयोदया एकैकनिषेकाः स्थितोक्तसंक्रमेण संक्रम्य गच्छंतीति स्वमुख पर मुखोदय विशेषोऽवं मंतव्यः । १० संदृष्टिः
१. बवगंतव्यः ।
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॥ ३४२ ॥ अथैकविंशतिचारित्र मोहनीयोपशमविधानक्रममाह
नपुंसक वेद आदिका परमुख उदयके द्वारा समान समय में उदयरूप एक-एक निषेक कहे क्रमानुसार संक्रमण रूप होता है। इस प्रकार स्वमुख और परमुख उदयमें विशेष जानना । जो प्रकृति अपने रूपमें ही उदयमें आती है उसमें स्वमुख उदय है । जो प्रकृति अन्यरूप हो १५ उदय में आवे वहाँ परमुख उदय है ||३४२ ||
आगे चारित्र मोहनीयकी इक्कीस प्रकृतियोंके उपशम करनेका विधान कहते हैं
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