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________________ ५५८ २० गो० कर्मकाण्ड आ षोडशादिप्रकृतिगळवाउवे दोर्ड पेलवपरु :-- नरकतिर्य्यद्विक विकलं स्त्यानगृद्धित्रिकोद्योताल पैकेंद्रियाणि । साधारण सूक्ष्मस्यावर५ षोडशमध्यमकषायाष्टौ ॥ नरकद्विक २ । तिग्कि २ | विकलेंद्रियत्रितनुं ३ | स्त्यानगृद्धित्रयमुं ३ | उद्योतनाममुं १ | आतपसुं १ | एकेंद्रियजातिनाममुं १ साधारणशरीरनागमुं १ । क्ष्ननाममुं १ स्थावरनामम् १ मितु षोडशप्रकृतिगळधुवु । मध्यनकषायाष्टौ अप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानमध्यमकषायाष्टकमक्कु ॥ ८ ॥ २५ रियनिरिक्खद् वियलं थीणतिगुज्जोब-ताब- एहंदी | साहरणसुहुमथावर सोलं मज्झिमकसायट्ठे || ३३८॥ ढस्त्रीषटुकषायाः पुरुषः क्रोधश्च मानं माया च । स्थूले सूक्ष्मे लोभः उदयवद्भवति क्षीणे ॥ क्रमदिदं षंढवेदमुं स्त्रीवेदमु नोकषायषट्कम् पुंवेद संज्वलनक्रोधमु संज्वलनमानमु संज्वलनमायेयुमिवु स्थूले अनिवृत्तिकरणनो व्युच्छित्तिप्रकृतिक्रम । सूक्ष्मे सूक्ष्मसांप रायनोळु लोभः सूक्ष्म संज्वलनलोभमो दे सत्वव्युच्छित्तियक्कुं । क्षीणे क्षीणकषायनोळु उदयवद्भवति १५ उदयदोळ, पेळद षोडशप्रकृतिगळु सत्वव्युच्छित्तिप्रकृतिगळप्पुवु । सयोग के वलियोळ सत्वव्युच्छित्ति • शून्यमप्पुर्दारदमयोगिकेवलिगुणस्थाननदुपांतांतदोळ सत्वव्युच्छित्तिप्रकृतिगळं गाथाद्वयदवं पेदपरु । संढित्थिछक्कसाया पुरिसो कोहो य माण मायं च । थूले सुहुमे लोहो उदयं वा होदि खीणम्मि ||३३९॥ ताः षोडशादिप्रकृतयः का ? इति चेदाह - नरकद्विकं तिर्यद्विकं विकलत्रयं स्त्यानगृद्धित्रयमुद्योतः आतपः एकेंद्रियं साधारणं सूक्ष्मं स्थावरं चेति षोडश । अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान कषाया अष्टौ ८ ।। ३३८ ॥ क्रमेण षंढवेदः स्त्रीवेदो नोकषायषट्कं पुंवेदः संज्वलनक्रोधः संज्वलनमान: संज्वलनमाया एताः स्थूले अनिवृत्तिकरणे व्युच्छिन्ना भवंति । सूक्ष्मसां पराये सूक्ष्मसंज्वलन लोभः, क्षीणकषाये उदयवत्षोडश, सयोगे विशेषार्थ - जहाँ जिन प्रकृतियोंकी सत्व व्युच्छित्ति होती है उससे ऊपर उन प्रकृतियोंकी सत्ताका अभाव होता है । आगे उन सोलह आदि प्रकृतियोंको कहते हैं कति नरकापूर्वी, तियंचगति, तिर्यचानुपूर्वी, विकलत्रय, स्त्यानगृद्धि आदि तीन, उद्योत, आतप, एकेन्द्रिय, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर इन सोलहकी व्युच्छित्ति अनिवृत्तिकरण के प्रथम भाग में होती है । अप्रत्याख्यान कषाय चार और प्रत्याख्यान कषाय चार इन आठ मध्यम कषायों की दूसरे भागमें व्युच्छिति होती है ||३३८ || नपुंसक वेद की तीसरे भाग में, स्त्रीवेदकी चौथे भाग में, छह नोकषायों की पाँचवें भाग३० में, पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध, संज्वलनमान, संज्वलनमायाको उठे, सातवें, आठवें और नवभाग में क्रम से व्युच्छित्ति होती है । इस प्रकार छसीसकी व्युच्छित्ति स्थूल अर्थात् अनिवृत्तिकरण में होती है। सूक्ष्म साम्पराय में सूक्ष्मलोभकी व्युच्छित्ति है। क्षीणकषाय में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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