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________________ ५०२ गो० कर्मकाण्डे सासादननोळ व्युच्छित्तियादुदप्पुरिदं तज्जितप्रकृतिपंचक, ५ । सूक्ष्मसांपरायन लोभमोदूं १ । उपशांतकषायन येरडुं वज्रनाराचनाराचसंहननंगळ २ कळेदुवप्पुरिंदमल्लि शून्यमक्कुं। क्षीण. कषायन पदिनारु १६ मितु गूडियसंयतसम्यग्दृष्टियोळु एकपंचाशत्प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कुं ५१। सयोगिकेवलिभट्टारकगुणस्थानदोळ नाल्वत्तेरडं प्रकृतिगळोळ वज्रर्षभनाराचसंहननमुं १ ५ स्वरद्विकमु २। विहायोगतिद्विकमु२। औदारिकद्विकमु २। संस्थानषट्कमु६। उपघात परघातोच्छ्वासत्रितयमु३। प्रत्येकशरीरमु १ मितु पदिने© १७ प्रकृतिगळं कळेनु शेषपंचविशतिप्रकृतिगळगुदय व्युच्छित्तियक्कं २५ । अंतागुत्तं विरलु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ सम्यक्त्वप्रकृतियु तीर्थमुमेरडुमनुदयंगळ २ उदयंगळे भत्तेलु ८७ । सासादनगुणस्थानदोळ मूरु गूडियनु दयंगळयदप्पुववरोळ णिरयदुणिरयाउगं णत्थि एंदु नरकद्विकमुमं नरकायुष्यमुमनितु मूर३ १० प्रकृतिगळनुदयप्रकृतिगळोळ कळेदु अनुदयप्रकृतिगळोळ कूडुत्तं विरलनुदयंगळे ८ । उवयंगळे. भत्तोंदु ८१। असंयतगुणस्थानदोळ पत्त गूडियनुदयंगळु पदिनेटरोळ सम्यक्त्वप्रकृतियुमं नरकद्विकमुमं नरकायुष्यमुमनितु नाल्कुं प्रकृतिगळ कळेदुदयंगळोळ, कूडुत्तं विरलनुदयंगळे पदि. नाल्कु १४ । उदयंगळेप्पत्तय्दु ७५ । सयोगिकेवलिभट्टारकगुणस्थानदोळेकपंचाशत्प्रकृतिगळ्कूडि स्वस्य पंचदश । पुनः क्षीण कषायांतानां केवलतद्योगाभावादुद्योतं विना सप्त । आहारकद्विकस्त्यानगृत्रियं १५ विना शून्यं अंतिमसंहननत्रयं विना सम्यक्त्वप्रकृतिः षण्णोकषायाः स्त्रीवेदस्य सासादने छेदात् पंच, लोभः वज्रनाराचनाराचाभावात् शून्यं षोडश च मिलित्वा एकपंचाशत् । सयोगे वज्रर्षभनाराचसंहननस्वरद्विकविहायोगतिद्विकोदारिकद्विकसंस्थानषट्कोपघातपरधातोच्छ्वासप्रत्येकशरीराणि राशो नेति पंचविंशतिः । तथा सति मिथ्यादृष्टौ सम्यक्त्वतीर्थकृत्त्वे अनुदयः २ । उदयः सप्ताशीतिः। सासादने अनुदयः त्रयं 'णिरयदु णिरयाउगं णत्थीति त्रयं च मिलित्वाष्टौ। उदयः एकाशीतिः । असंयते दश मिलित्वा सम्यक्त्वनरकद्विकनरकायुरुदयाच्चतुबिना अपनी शेष पन्द्रह । पुनः क्षीणकषाय पर्यन्त कार्मण काययोग नहीं होता इससे ऊपरके गुणस्थानों की व्युच्छित्ति यहाँ ही करनी चाहिए। सो देशविरतकी उद्योत बिना सात, प्रमत्तकी आहारकद्विक और स्त्यानगृद्धि आदि तीनके न होनेसे शून्य, अप्रमत्तकी तीन संहननके बिना केवल एक सम्यक्त्व प्रकृति, अपूर्वकरणकी छह नोकषाय, अनिवृत्तिकरणकी पाँच क्योंकि स्त्रीवेदकी व्युच्छित्ति सासादनमें हो जाती है, सूक्ष्मसाम्परायका लोभ, उपशान्त मोह सम्बन्धी २५ वज्रनाराच और नाराचका अभाव होनेसे शून्य, क्षीणकषायकी सोलह इस तरह सब मिलकर असंयतमें इक्यावनकी व्युच्छित्ति होती है । सयोगीमें बयालीसमें-से वर्षभनाराच संहनन, सुस्वर, दुःस्वर, प्रशस्त अप्रशस्त विहायोगति, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, छह संस्थान, उपघात, उछ्वास और प्रत्येक शरीरके न होनेसे पच्चीसकी व्युच्छित्ति होती है । ऐसा होनेपर३० १. मिथ्यादृष्टि में सम्यक्त्व और तीर्थकर दोका अनुदय । उदय सत्तासी। व्यु. तीन । २. सासादनमें नरकगतिद्विक और नरकायुका उदय न होनेसे पाँचमें तीन मिलाकर आठका अनुदय । उदय इक्यासी। ३. असंयतमें दस मिलाकर सम्यक्त्व, नरकद्विक और नरकायुका उदय होनेसे अनुदय चौदह । उदय पचहत्तर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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