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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५०१ वत्तिसद सयोगकेवलि भट्टारकगुणस्थानमिल्लि तक्कुमें दडे 'कर्मयोगो विग्रहगतावेव' एंबो नियममिल्लप्पुरिदमा. विग्रहगतियोळ वत्तिसद प्रतरलोकपूरणत्रिसमयसमुद्घातसयोगकेवलिभट्टारकगुणस्थानवोळं कार्मणकाययोगमयक्कुमप्पुरिदमी कार्मणकाययोगदोळ नाल्कुं गुणस्थानंगळप्पुवल्लि मिथ्यावृष्टियोळ मिथ्यात्वप्रकृतियु१। सूक्ष्मनाममुं १। पर्याप्तनाममुमितु मूरुं प्रकृतिगळ्गुदयम्युच्छित्तियक्कुं ३ । सासादननोळ पेळ्दपरु : साणे थीवेदछिदी णिरयदुणिरयाउगं ण तियदसयं । इगिवण्णं पणवीसं मिच्छादिसु चउसु वोच्छेदो ॥३१९॥ सासादने स्त्रीवेदच्छेदः नरकद्विकनरकायुनं त्रिकं दशकमेकं पंचाशत्पंचविंशतिम्मिथ्याविषु चतुर्पु विच्छेदः॥ सासादनसम्यग्दृष्टियोळनंतानुबंधिचतुष्टयमु ४ मेकेंद्रियजातिनाममुं १। स्थावरनाममुं १ विकलत्रयमुं ३ स्त्रीवेवमुमितु पत्तुं प्रकृतिगळ्गुदयव्युच्छित्तियक्कु १०। असंयतनोळु वैक्रियिकद्विकज्जितमागि पदिनय्दुं प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कुं १५ । मेळे देशसंयताविक्षीणकषायावसानमाद गुणस्थानत्तिगळोळ केवलकार्मणकाययोगमिल्लप्पुदरिदमा वेशसंयतनोळुद्योतरहितप्रकृतिसप्तकमु ७। आहारकद्वितयमुं२। स्त्यानगृद्धित्रयमु ३ मी योगदोळ कलेदुवप्पुरिदं प्रमत्तसंयतगुणस्थानदोळ शून्यमक्कु । मप्रमत्तगुणस्थानदोळंतिम- १५ संहननत्रयज्जितसम्यक्त्वप्रकृतियोंदु १ अपूर्वकरणन षण्नोकषायंगळं ६ अनिवृत्तिकरणन स्त्रीवेदं नान्यो योगः, इत्यवधारणार्थः। तेन पूर्वभवशरीरं त्यक्त्वोत्तरभवग्रहणाथं गच्छताऽपि तत्र मिथ्यादृष्टिसासादनासंयतगुणस्थानानि स्युः । तर्हि सयोगगुणस्थाने कथं कर्मयोगः ? विग्रहगतावेवेत्यनियमात् प्रतरलोकपूरणत्रिसमयेऽपि तत्संभवात् ॥ ३१८ ॥ तन्मिथ्यादृष्ट्यादिचतुर्गुणस्थानेषु व्युच्छित्तिः - मिथ्यादृष्टी मिथ्यात्वं सूक्ष्ममपर्याप्तं चेति त्रयं । २० सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं एकेंद्रियं स्थावरं विकलत्रयं स्त्रीवेदश्चेति दश । असंयते वैक्रियिकद्विकं विना है' इस नियमके अनुसार यह कथन 'विग्रहगतिमें कार्मणयोग ही होता है, अन्य योग नहीं होता' यह अवधारण करनेके लिए किया है। शंका-पूर्वभवका शरीर त्यागकर आगामी भव धारण करने के लिए जो गति होती है उसे विग्रहगति कहते हैं। विग्रहगतिमें मिथ्यादृष्टि, सासादन और असंयत गुणस्थान होते २५ हैं। तब सयोगकेवली गुणस्थानमें कार्मणयोग कैसे है ? समाधान-विग्रहगतिमें ही कार्मणयोग होता है ऐसा नियम नहीं किया है अतः प्रतर और लोक पूरण समुद्घातके तीन समयोंमें कार्मण योग होता है ॥३१८॥ उसमें मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानोंमें व्युच्छित्ति इस प्रकार है मिथ्यादृष्टि में मिथ्यात्व, सूक्ष्म अपर्याप्त इन तीनकी होती है। सासादनमें अनन्तानु- ३० बन्धी चार, एकेन्द्रिय, स्थावर, विकलत्रय, स्त्रीवेद दसकी होती है। असंयतमें वैक्रियिकके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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