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________________ ४९४ गो० कर्मकाण्डे दपप्रकृतिगळु नूरिप्पतरडरोळाहारकद्विक, २। देवायुष्यमु १। वैक्रियिकषट्कमु ६ । मनुष्यतिर्यगानुपूर्व्यद्वितयमु २ नरकायुष्यमुं १ । मिश्रप्रकृतियु१। स्त्यानगृद्धित्रितयमुं ३ । स्वरद्वयमुं २। विहायोगतिद्वयमुं २ परघातचतुष्कमु ४ मितु चतुविशतिप्रकृतिगळं कळेदु शेषतों भत्तेंदु प्रकृतिगळे बुदत्य । ई प्रकृतिगळिप्पत्तनाल्कुमेककळदुवे दोडे नरकगति देवगतिसंबंधिगळं पर्याप्त५ काल संबंधिगळं विग्रहगत्युदययोग्यंगळुमप्पुदरिनो औदारिकमिश्रकाययोगिगळगुदययोग्यंगळल्तप्पु दरिदं । असंयते असंयतगुणस्थानदोळनादेयायशस्कोत्तिदुर्भगषंढस्त्रीवेदंगळे बी पंचप्रकृतिगळगुदयमिल्ला प्रकृतिगळ्गे सासादननोळुदयव्युच्छित्तियक्कुमंतागुत्तं विरलु मिथ्यादृष्टियोळु पर्याप्तियिदं मेलुदयिसुगुमप्पुरिदमातपनाममं कळेदु शेषमिथ्यात्वप्रकृतिसूक्ष्मत्रितयमंतु नाल्कुं प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियकुं ४ । चतुर्दश सासादने सासादननोळु अनंतानुबंधिकषायचतुष्कमुमेकेंद्रिय स्थावरविकलत्रय अनादेय अयशस्कोत्ति दुब्र्भगषंढवेद स्त्रीवेदमें ब चतुर्दशप्रकृतिगळ्गुदयव्युच्छित्तियक्कुं १४ । असंयतनो द्वितीयकषायचतुष्टयमुं ४ । देशसंयतादिक्षीणकषायपर्यंतमादगुणस्थानत्तिगळौदारिकमिश्रकाययोगमिल्लप्पुरिदमा गुणस्थानंगळोळु यथाक्रमदिद देशसंयतनो द्योतज्जितसप्तप्रकृतिगळ७ प्रमत्तनोलु एनुमिल्लेके दोडे आहारतिक, स्त्यानगृद्धित्रितयमुं कळेदुवप्पु दरिदं । अप्रमत्तनोळु नाल्कु ४। अपूर्वकरणनोळारु ६। अनिवृत्तिकरणन पंढस्त्रीवेदद्वयरहित१५ चत्वारि ४ । सामान्योदय प्रकृतिषु आहारकद्विकं देवायुर्वेक्रियिकषट्क मनुष्यतिर्यगानुपूर्ये नरकायुः मिश्रप्रकृतिः स्त्यानगृद्धि त्रयं स्वरद्वयं विहायोगतिद्वयं परघातचतुष्कं चेति चतुर्विशतिः कुतो नेति चेत् नरकदेवगतिपर्याप्तकालविग्रहगतिसम्बन्धिनीनामत्रानुदयात् । असंयते अनादेयायस्कीतिदुर्भगषंढस्त्रीवेदानामुदयो नहि सासादने एव व्युच्छित्तेः । तथासति मिथ्यादृष्टी मिथ्यात्वं सूक्ष्मत्रयं च व्युच्छित्तिः आतपस्य पर्याप्तेरुपर्युदयात् । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं एकेन्द्रियस्थावरविकलत्रयानादेयायशस्कोतिदुर्भगषंढस्त्रोवेदाश्चेति चतुर्दश. १४ । असंयते स्वस्य द्वितीयकषायचतुष्कं तथा क्षीणकषायांतेषु अस्य योगस्याभावाद्देशसंयतस्योद्योतं विना सप्त । प्रमत्तस्य परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास ये बारह घटानेपर उदययोग अठानबे ९८ । गुणस्थान चार। ___ शंका-सामान्य उदय प्रकृतियोमें-से आहारकद्विक, देवायु, वैक्रियिकषट् , मनुष्यानुपूर्वी, तियेचानुपूर्वी, नरकायु, मिश्रप्रकृति, स्त्यानगृद्धि आदि तीन, सुस्वर, दुःस्वर, दो २५ विहायोगति, परघातादि चार, इन चौबीसका उदय यहाँ क्यों नहीं है ? समाधान-यहाँ नरकगति, देवगति, पर्याप्तकाल और विग्रहगति सम्बन्धी प्रकृतियोंका उदय नहीं होता। ___ असंयतमें अनादेय, अयशस्कीति, दुर्भग, नपुंसक और स्त्रीवेदका उदय नहीं होता। अतः उनकी व्युच्छित्ति सासादनमें ही हो जाती है। ऐसा होनेपर मिथ्यादृष्टि में मिथ्यात्व और सूक्ष्म आदि तीनकी व्युच्छित्ति होती है क्योंकि आतपका उदय पर्याप्ति पूर्ण होनेपर होता है । सासादनमें अनन्तानुबन्धी चार, एकेन्द्रिय, स्थावर, विकलत्रय, अनादेय, अयशःकीति, दुभंग, नपुंसक वेद, स्त्रीवेद इन चौदहकी व्युच्छित्ति है। असंयतमें अपनी अप्रत्याख्यानावरण कपाय चार तथा क्षीणकपाय गुणस्थान पर्यन्त औदारिक मिश्रयोगका अभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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