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________________ १० १५ २० ४५८ ६५ व्यु मि अ २ उ ९३ Jain Education International गो० कर्मकाण्डे पंचेंद्रिय ९९ सा fA अ ४ स्त्रीवेदमु १ मपर्याप्तमुं १ रहितमप्प पंचेंद्रिययोग्यप्रकृतिगळे पर्याप्त पंचेंद्रियोदययोग्यप्रकृतिगळु तो भत्ते ९७ । अल्लि मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदो क्रुदयव्युच्छिसिमिध्यात्वप्रकृतियों देवकुं १ | अनुदयप्रकृति सम्यक्त्वप्रकृतियुं मिश्रप्रकृतियुमरडप्पुवु २ । उदयप्रकृतिगळ, तो भत्त ९५ । सासादन गुणस्थानदोदयव्युच्छित्तिगळनंतानुबंधिकषाय चतुष्कमे ४ यवकुं । ओं दुगूडिदनदय ५ प्रकृतिगळ, मूरु ३ । उदयप्रकृतिगळ, तो भत्तनात्कु ९४ । मिश्रगुणस्थानदोळ दयव्युच्छित्ति मिश्रप्रकृतियों देवकुं १ | नालकुगू डिदनुदयप्रकृतिगळे करोल, मिश्रप्रकृतियं कळ दुदयप्रकृतिगळोल कूडियुदय प्रकृतिगलोलु तिर्य्यगानुपूर्व्यमं कलेदनुदय प्रकृतिगलोलु कूडुतं विरलनुदय प्रकृतिगलेलु ७ । उदयप्रकृतिगलु तो भत्तु ९० । असंयतगुणस्थान दोलुदयव्युच्छित्तिगले टु ८ । ओ दुगू दिनुदयप्रकृतिगलें टरोलु सम्यक्त्व प्रकृतियुगं तिर्य्यगानुपूर्यं मं कलेदुदयप्रकृतिगलोलु कूडुत्तं विरलनुदयप्रकृतिगलारु ६ । उदयप्रकृतिगलु तो भत्तो हु ९१ । देश संयत गुणस्थान दोलुदयव्युच्छित्तिगलें टु ८ । ४ ८ दे ८ ८ ९५ ९१ ९२ ८४ १५ निक्षिप्य पंचदश, उदयश्चतुरशीतिः । स्त्री वेदार्या सोनपंचेंद्रिय तिर्यगुक्तास्तत्पर्याप्तस्य उदययोग्याः सप्तनवतिः । तत्र मिथ्यादृष्टौ व्युच्छित्ति: मिथ्यात्वं । अनुदयः सम्यक्त्वमिश्रप्रकृती । उदयः पंचनवतिः । सासादने व्युच्छित्तिरनंतानुबंचिचतुष्कं । एक संयोज्य अनुदयस्तिस्रः । उदयश्चतुर्नवतिः । मिश्रे व्युच्छित्तिः मिश्रं । अनुदयः चतुष्कं तिर्यगानुपूर्व्यं च संयोज्य मिश्रोदयात् सुत । उदयः नवतिः । असंयते व्युच्छित्तिः अष्टौ । अनुदयः एकां संयोज्य सम्यक्त्वतियंगानुपूर्योदयात् षट्, उदयः एकनवतिः । देशसंयते व्युच्छित्तिः अष्टौ । अनुदयः अष्ठौ संयोज्य चतुर्दश । ५. असंयतके अनुदय सात और व्युच्छित्ति आठको मिलानेसे देशसंयत में अनुदय पन्द्रह | उदय चौरासी । व्युच्छित्ति आठ । पंचेन्द्रिय तिर्यंचके उदय योग्य निन्यानबे में से स्त्रीवेद और अपर्याप्तको घटानेपर पंचेन्द्रियपर्याप्त तिर्यंचके उदय योग्य सत्तानवे । १. मिथ्यादृष्टि में व्यच्छित्ति एक मिथ्यात्व । अनुदय दो सम्यक्त्व और मिश्र प्रकृति उदय पंचानवे । २. सासादन में अनुदय तीन । व्युच्छित्ति अनन्तानुबन्धी चतुष्क । उदय चौरानवे । ३. सासादनके अनुदय तीनमें उसकी व्युच्छित्ति चारको मिलानेसे तथा उसमें तिचानुपूर्वीको जोड़ने और मिश्र के उदय में आनेसे मिश्रगुणस्थान में अनुदय सात । उद्य । व्युच्छित्ति एक मिश्र की । नव् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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