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________________ ४५७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका थावरदुगसाहारणताविगिविगलूण ताणि पंचक्खे । इत्थि अपज्जत्तूणा ते पुण्णे उदयपयडीओ ॥२९५॥ स्थावरद्वयसाधारणातपैकविकलोनानि तानि पंचाक्षे । स्व्यपर्याप्तोनानि तानि पूणे उदयप्रकृतयः॥ स्थावरसूक्ष्मद्वयमुं २ । साधारणशरीरनाममुं १ । आतपनाममुं१। येकेंद्रिय द्वींद्रिय त्रोंद्रिय ५ चतुरिद्रियजातिनामचतुष्टयमु ४ मितेंटु प्रकृतिळिंदमूनितमप्पमुं पेळ्द सामान्यतिर्यंचरुगळगुदययोग्यंगळु नूरेळं प्रकृतिगळे पंचेंद्रियतिथ्यंचरुगळगुदययोग्यप्रकृतिगळु तो भत्तो भत्तप्पवु । ९९ ॥ अल्लि मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ मिथ्यात्वमुमपर्याप्तनाममुमेरडुमुदयब्युच्छित्तिगळु २। उदयप्रकृतिगळु तों भत्तेळु ९७ । मिश्रप्रकृतियं सम्यक्त्वप्रकृतियुमेंबेरडुमनुदय प्रकृतिगळप्पुवु २। सासादनगुणस्थानदोलुदयव्युच्छित्तिगळनंतानुबंधिचतुष्कमक्कुं ४ । उदय प्रकृतिगळ तो भत्तय्दु ९५। १० एरडुगूडिदनुदय प्रकृतिगळु नाल्कु ४ । मिश्रगुणस्थानदो मिश्रप्रकृतियो देयुक्यव्युच्छित्तियक्कु १। मुदयप्रकृतिगळु तो भत्तोंदु ९१ । नाल्कुगूडियनुदयप्रकृतिगळेंटु ८ । असंयतगुणस्थानदोळ दय. व्युच्छित्तिाळेटु ८ । ओ दुगूडियनुदयप्रकृतिगळो भतरोळ सम्यक्त्वप्रकृतियुमं तिर्यगानुपूर्व्यमुमं कळे दुदयदोळ कडुत्तं विरलनुदयप्रकृतिगळे ७। उदयप्रकृतिगळ तो भत्तेरडु ९२ । देशसंयत. गुणस्थानदोळ दयव्युच्छित्तिगटु ८। अनुवयंगळे टुगूडि पदिनय्दु १५। उदयप्रकृतिगळे भत्त १५ नाल्कु ८४ । संदृष्टि : स्थावरसूक्ष्मसाधारणातपैकेंद्रियद्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिंद्रियोनसामान्धतिर्यगुक्ताः पंचेंद्रियतिरश्चि उदययोग्याः एकोनशतं । तत्र मिथ्यादृष्टी व्युच्छित्तिः मिथ्यात्वापर्याप्तं २ उदाः सप्तनवतिः । अनुदयः मित्रसम्यक्त्वप्रकृती। सासादने व्युच्छित्तिरनंतानुबंधिचतुष्कं । उदयः पंचनवतिः । द्वयं संयोज्य अनुदयः चतस्रः । मिश्रे मिश्रं व्युच्छित्तिः । उदयः एकनवतिः, चतस्रः संयोज्य अनुदयोऽष्टौ । असंयते व्युच्छित्तिः अष्टौ एकां २० निक्षिप्यानुदयः सम्यक्त्वतिर्यगानुपर्योदयात्सप्त । उदयः द्वानवतिः । देशसंयते व्युच्छित्तिरष्टौ, अनुदयः अष्टौ सामान्य तियेचके उदय योग्य एक सौ सातमें-से स्थावर, सूक्ष्म, सधारण, आतप, एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रियको घटानेपर पंचेन्द्रिय तियच में उदय योग्य निन्यानबे ९९ हैं। उनमें-से १. मिथ्यादृष्टि में व्युच्छित्ति दो, मिथ्यात्व और अपर्याप्त | उदय सत्तानबे । अनुदय दो २५ मिश्र और सम्यक्त्व प्रकृति । २. मिथ्यात्वकी व्युच्छित्ति दो और अनुदय दोको मिलानेसे सासादनमें अनुदय चार । उदय पंचानबें। व्यच्छित्ति अनन्तानुबन्धी चार । ३. सासादनमें अनुदय चार और व्युच्छित्ति चारको मिलाने से तथा मिश्र प्रकृतिका उदय और तिर्यंचानुपूर्वीका अनुदय होनेसे मिश्रमें अनुदय आठ। उदय इक्यानबे। व्युच्छित्ति ३० एक मिश्रप्रकृति की। ४. मिश्रमें अनुदय आठ और व्युच्छित्ति एकको मिलानेसे नौ हुए । उनमें-से सम्यक्त्व और तियंचानुपूर्वीका उदय होनेसे असंयतमें अनुदय सात । उदय बानबे । व्युच्छित्ति आठ। Jain Education Interna c For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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