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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका एंटु गूडियनुदयप्रकृतिगलु पदिनाल्कु १४ । उदयप्रकृतिगलग्भत्तमूरु ८३ । संदृष्टि :
पर्याप्तपंचेंद्रिय ९७
०मि सा | मि व्युच्छि
उदी
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पुंसंदूणिस्थिजुदा जोणिणिए अविरदे ण तिरियाणू ।
पुण्णिदरे थी थीणति परघाददु पुण्णउज्जोवं ॥२९६॥ पुंषंढोनस्त्रीयुताः योनिमत्यामविरते न तिर्यगानुपूयं पूर्णेतरस्मिन् स्त्री स्त्यानगृद्धित्रय ५ परघातद्वय पूर्णोद्योतं ॥
योनिमतितियंचरोदययोग्यप्रकृतिगळु पंचेंद्रियपर्याप्ततियंचरुगळ योग्य प्रकृतिगळ तो भत्तेळरोळु पुवेदमुमं षंढवेदमुमं कळेदु स्त्रीवेदमुमं कूडुत्तं विरलु तो भत्तारु प्रकृतिगळप्पुवु ९६। अल्लि मिश्यावृष्टिगुणस्थानदोळुदयव्युच्छिति मिथ्यात्वप्रकृतियों देयकुं १। सासादननोळ दयव्युच्छित्तियनंतानुबंधिचतुष्टयमुं ४ तिय्यंगानुपूर्व्य, कूडियय्दप्पुवु । ५। एक दोडे १० जोणिणिए अविरदे ण तिरियाणू एंदु तिय्यंगानुपूठव्यं सासादननोले व्युच्छित्तियागलुवेळकुमप्पुदरिदं । मिश्रनोळुदयम्युच्छित्ति मिश्रप्रकृतियों देयकुं १। असंयतननोळु व्युच्छित्तिगळु उदयस्यशीतिः ॥ २९५ ॥
___ योनिमत्तियक्षु उदययोग्याः पंचेंद्रियपर्याप्तोक्तसप्तनवत्यां पुषंढवेदावपनीय स्त्रोवेदे निक्षिप्ते षण्णवतिभवति । तत्र व्युच्छित्तयः मिथ्यादृष्टी मिथ्यात्वं । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं तिर्यगानुपूज्यं चेति पंच । १५ कुतः ? अविरदे णतिरियाण्वित्युक्तत्वात् । मिश्रे-मित्रं । असंयते तिर्यगानुाभावात् सप्त । देशसंयते गुण
४. मिश्रके अनुदय सात और व्युच्छित्ति एकको मिलानेसे आठ में-से सम्यक्त्व और तिर्यंचानुपूर्वी का उदय होनेसे असंयतमें अनुदय छह । उदय इक्यानबे । व्युच्छित्ति आठ।
५. असंयतके अनुदय छह में उसकी व्युच्छित्ति आठ जोड़नेसे देशसंयतमें अनुदय चौदह । उदय तेरासी । व्युच्छिति आठ ।।२९५।।
पंचेन्द्रिय पर्याप्तके उदययोग्य सत्तानबेमें-से पुरुष वेद और नपुंसक वेदको घटाकर स्त्रीवेदको जोड़नेसे योनिमत तियंचमें उदय योग्य छियानबे होती हैं। उनमें से ।
१. मिथ्यादृष्टिमें व्युच्छित्ति मिथ्यात्वकी। अनुदय दो सम्यक्त्व और मिश्र । उदय चौरानबे।
२. सासादनमें अनुदय तीन । उदय तिरानबे । व्युच्छित्ति पाँच अनन्तानुवन्धी चार २५
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