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________________ ___४५९ ४५९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका एंटु गूडियनुदयप्रकृतिगलु पदिनाल्कु १४ । उदयप्रकृतिगलग्भत्तमूरु ८३ । संदृष्टि : पर्याप्तपंचेंद्रिय ९७ ०मि सा | मि व्युच्छि उदी ~~~ पुंसंदूणिस्थिजुदा जोणिणिए अविरदे ण तिरियाणू । पुण्णिदरे थी थीणति परघाददु पुण्णउज्जोवं ॥२९६॥ पुंषंढोनस्त्रीयुताः योनिमत्यामविरते न तिर्यगानुपूयं पूर्णेतरस्मिन् स्त्री स्त्यानगृद्धित्रय ५ परघातद्वय पूर्णोद्योतं ॥ योनिमतितियंचरोदययोग्यप्रकृतिगळु पंचेंद्रियपर्याप्ततियंचरुगळ योग्य प्रकृतिगळ तो भत्तेळरोळु पुवेदमुमं षंढवेदमुमं कळेदु स्त्रीवेदमुमं कूडुत्तं विरलु तो भत्तारु प्रकृतिगळप्पुवु ९६। अल्लि मिश्यावृष्टिगुणस्थानदोळुदयव्युच्छिति मिथ्यात्वप्रकृतियों देयकुं १। सासादननोळ दयव्युच्छित्तियनंतानुबंधिचतुष्टयमुं ४ तिय्यंगानुपूर्व्य, कूडियय्दप्पुवु । ५। एक दोडे १० जोणिणिए अविरदे ण तिरियाणू एंदु तिय्यंगानुपूठव्यं सासादननोले व्युच्छित्तियागलुवेळकुमप्पुदरिदं । मिश्रनोळुदयम्युच्छित्ति मिश्रप्रकृतियों देयकुं १। असंयतननोळु व्युच्छित्तिगळु उदयस्यशीतिः ॥ २९५ ॥ ___ योनिमत्तियक्षु उदययोग्याः पंचेंद्रियपर्याप्तोक्तसप्तनवत्यां पुषंढवेदावपनीय स्त्रोवेदे निक्षिप्ते षण्णवतिभवति । तत्र व्युच्छित्तयः मिथ्यादृष्टी मिथ्यात्वं । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं तिर्यगानुपूज्यं चेति पंच । १५ कुतः ? अविरदे णतिरियाण्वित्युक्तत्वात् । मिश्रे-मित्रं । असंयते तिर्यगानुाभावात् सप्त । देशसंयते गुण ४. मिश्रके अनुदय सात और व्युच्छित्ति एकको मिलानेसे आठ में-से सम्यक्त्व और तिर्यंचानुपूर्वी का उदय होनेसे असंयतमें अनुदय छह । उदय इक्यानबे । व्युच्छित्ति आठ। ५. असंयतके अनुदय छह में उसकी व्युच्छित्ति आठ जोड़नेसे देशसंयतमें अनुदय चौदह । उदय तेरासी । व्युच्छिति आठ ।।२९५।। पंचेन्द्रिय पर्याप्तके उदययोग्य सत्तानबेमें-से पुरुष वेद और नपुंसक वेदको घटाकर स्त्रीवेदको जोड़नेसे योनिमत तियंचमें उदय योग्य छियानबे होती हैं। उनमें से । १. मिथ्यादृष्टिमें व्युच्छित्ति मिथ्यात्वकी। अनुदय दो सम्यक्त्व और मिश्र । उदय चौरानबे। २. सासादनमें अनुदय तीन । उदय तिरानबे । व्युच्छित्ति पाँच अनन्तानुवन्धी चार २५ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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