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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वदीपिका तेउतिगूणतिरिक्खेसुज्जोवो बादरेस पुण्णेसु ।
सेसाणं पयडीणं ओषं या होदि उदओ दु ॥२८९।। तेजस्त्रिकोनतिर्यभूद्योतो बादरेषु पूर्णेषु । शेषाणां प्रकृतीनाभोघवद्भवत्युदयस्तु ।
तेजस्कायिक मुं वायुकायिक, साधारणवनस्पतिकायिक गुमें बी जीवत्रितयोनतियंचरु बादरपामजोवंगळोळद्योतनामकर्ममुदयिसुगुं। तु मत्से शेषप्रकृतिगळुदयक्रमं गुणस्थानदोळु ५ पेन्दतयक्कु-। मनंतरमी परिभाषासूत्रपंचकप्रणीतप्रकृत्युदयनियममं मनदोलय धारिसिदा तंगे नरकादिगतिचतुष्टयदोळुदयप्रकृतिगळं पेळल्वैडि मुन्नं नरकगतियो दययोग्यप्रकृतिगळं पेळ्दपरु :
थीणतिथीपुरिसूणा घादी णिरयाउणीचवेयणियं ।
णामे सगवचिठाणं णिरयाणू णारयेसुदया ।।२९०।। स्त्यानगृद्धित्रयं स्त्रीपुरुषोनानि घातीनि नरकायुन्।चवेदनीयं नाम्नि स्ववाविस्थानं १० नारकानुपूर्व्यनारकेषूदयाः॥
स्त्यानगृद्धित्रय स्त्रीवेद पुंवेदमें बी पंचप्रकृतिगळं कळेदु शेषघातिग नालवत्तरघु ४२ । नारकायुज्युमुं १। नीचेग्ोत्रमुं १ सातासातवेदनीयद्वितयमुं २। नामकर्मदोळु नारकरुगळ भाषापर्याप्तिस्थानदिप्पत्तों भत्तुप्रकृतिगळं २९ । नारकासुपूर्व्यमुमें ब षडुत्तरसप्ततिप्रकृतिगळु नारकगुदययोग्यप्रकृतिगळप्पुवु ७६ ॥
अनंतरं नारकरुगळभाषापाप्तिस्थानद यिप्पत्ती भत्तु प्रकृतिगज्वावु दोडे पेळ्दपरु :
तेजोवायुसाधारणवनस्पत्यूनशेषबादरपर्याप्ततिर्यक्षु उद्योतः । तु-पुनः शेषप्रकृत्युदयक्रमो गुणस्थानवद् भवेत् ॥ २८९ ॥ एवं पंवपरिभाषा सूरुदयनियमं परिज्ञाप्य चतुर्गतिषु उदयप्रकृतोर्वक्तुं प्राक् नरकगतावाह
स्त्यानगृद्धि त्रयस्त्रीपुंवेदोनघातीनि द्वाचत्वारिंशत् । नरकायुर्नीचगोत्रसातासातवेदनीयानि नामकर्मणि २० नारकभापापर्याप्तिस्थानस्यै कान्नत्रिंशत् नारकानुसूयं चेति षट्सप्ततिारकोदययोग्यानि ।। २९० ॥ तदेकान्नत्रिंशतमाह
तेजस्काय, वायुकाय, साधारण वनस्पतिकायके सिवाय शेष बादर पर्याप्त तिर्यंचोंमें उद्योत प्रकृतिका उदय होता है। शेष प्रकृतियोंके उदयका अनुक्रम गुणस्थानवत् जानना ।।२८९॥
इस प्रकार पाँच परिभाषा सूत्रोंसे उदयका नियम कहकर चार गतियोंमें उदयप्रकृतियोंका कथन करनेके लिए पहले नरकगतिमें कहते हैं
___ स्त्यानगृद्धि आदि तीन, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बिना घातिकर्मीकी शेप बयालीस प्रकृतियाँ, नरकाय, नीचगोत्र, साता और असाता वेदनीय, तथा नारकी जीवोंके भाषापर्याप्तिके स्थानमें होनेवाली नामकर्म की उनतीस प्रकृतियाँ और नरकानुपूर्वी, ये छिहत्तर ३० प्रकृतियाँ नरकगतिमें उदय योग्य हैं ।।२९०।।
उन उनतीस प्रकृतियोंको कहते हैं
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