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________________ गो० कर्मकाण्ड भंग ६३४ ६३५ ६२ अनाहारकमें सत्ता ५९४ उपशमश्रेणिके अपूर्वकरण आदिमें स्थान और ३. सत्त्वस्थानभंगाधिकार ५९६-६४६ नमस्कारपूर्वक भंग सहित सरवस्थानका उसमें घटायी गयो प्रकृतियों के नाम कथन करने की प्रतिज्ञा ५९६ क्षपक अपूर्वकरणमें स्थान-भंग गुणस्थानों में स्थान और भंगके भेदोंके प्रकार ५९७ क्षपक अनिवृत्तिकरणमें भंग गुणस्थानों में प्रकृतियोंका सत्त्व ५९७ क्षपक अनिवृत्तिकरणमें भंग ६३८ गुणस्थानों में स्थानों की संख्या ५९९ सूक्ष्म साम्पराय और क्षीणकषायोंमें स्थान तथा गुणस्थानों में भंगों की संख्या ६०० भंग मिथ्याष्टिमें अठारह स्थानोंकी प्रकृति संख्या ६०१ संयोग और अयोग केवलीमें भंग घटायो गयो प्रकृतियों के नाम ६०२ उपशमश्रेणिके अनन्तानुबन्धी सहित आठ अठारह स्थानोंके पचास भंग ६०३ स्थानोंमें मतभेद ६४२ सासादन और मिश्र में स्थान ६१६ क्षपक श्रेणिके अनिवृत्ति गुणस्थानमें कषायोंके सासादन में घटायी प्रकृतियाँ ६१७ क्षपणमें मतभेद मिश्रमें घटायी गयी प्रकृतियाँ ६१८ क्षपक अनिवृत्तिकरणके स्थानों और भंगोंमें सासादन मिश्रमें भंगोंकी संख्या ६१८ मतभेद ६४३ असंयतमें चालीस स्थानोंकी उपपत्ति ६२२ मतान्तरसे गुणस्थानोंमें स्थानोंकी संख्या , ६४३ असंयतमें घटायी गयी प्रकृतियाँ ६२४ मतान्तरसे गुणस्थानोंमें भंगोंकी संस्था / ६४ असंयतमें भंगोंकी संख्या । ६२५ सत्त्वस्थानके अभ्यासका फल ६४५ देशसंयत आदि तीन गुणस्थानोंमें स्थान और भंग ६३१ सिद्धान्त चक्रवर्तीकी उपाधिकी सार्थकता । ६४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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